दिन अच्छे आने वाले हैं (काव्य)     
Author:गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे,
हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

जब पड़ा विपद का डेरा हो, दुर्घटनाओं ने घेरा हो,
काली निशि हो, न सबेरा हो, उर में दुख-दैन्य बसेरा हो,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

जब मन रह-रह घबराता हो, क्षण भर भी शान्ति न पाता हो,
हरदम दम घुटता जाता हो, जुड़ रहा मृत्यु से नाता हो,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

जब निन्दक निन्दा करते हों, द्वेषी कुढ़-कुढ़ कर मरते हों,
साथी मन-ही-मन डरते हों, परिजन हो रुष्ट बिफरते हों,
तो अपने जी में यह समझो
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

बीतती रात दिन आता है, यों ही दुख-सुख का नाता है,
सब समय एक-सा जाता है, जब दुर्दिन तुम्हें सताता है,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

- गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

 

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश