देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
प्रभु ईसा (काव्य)     
Author:मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

मूर्तिमती जिनकी विभूतियाँ
जागरूक हैं त्रिभुवन में;
मेरे राम छिपे बैठे हैं
मेरे छोटे-से मन में;

धन्य-धन्य हम जिनके कारण
लिया आप हरि ने अवतार;
किन्तु त्रिवार धन्य वे जिनको
दिया एक प्रिय पुत्र उदार;

हुए कुमारी कुन्ती के ज्यों
वीर कर्ण दानी मानी;
माँ मरियम के ईश हुए त्यों
धर्मरूप वर बलिदानी;

अपना ऐसा रक्त मांस सब
और गात्र था ईसा का;
पर जो अपना परम पिता है
पिता मात्र था ईसा का।

मैथिलीशरण गुप्त
[विशाल भारत]

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश