देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
योगफल (काव्य)     
Author:अज्ञेय | Ajneya

सुख मिला :
उसे हम कह न सके।
दुख हुआ :
उसे हम सह न सके।
संस्पर्श बृहत् का उतरा सुरसरि-सा :
हम बह न सके ।
यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय कदाचित्
जीवित भी हम रह न सके।

- अज्ञेय

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