जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 
जिद्दी मक्खी (बाल-साहित्य )     
Author:दिविक रमेश

कितनी जिद्दी हो तुम मक्खी
अभी उड़ाती फिर आ जाती!
हां मैं भी करती हूं लेकिन
मां मनाती झट मन जाती।

मां तेरी समझाती होगी
जॆसे मां मेरी समझाती ।
जो बच्चे होते हॆं जिद्दी
उनको अक्ल कभी ना आती।

अगर स्कूल तुम जाती होती
तुम भी समझदार बन जाती।
अच्छी-अच्छी बातें कितनी
टीचर जी तुमको समझाती!

-दिविक रमेश

 

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