देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून)  (विविध)     
Author:डा. जगदीश गांधी

स्कूलों में बच्चों को ‘यौन शिक्षा' के स्थान पर ‘योग' एवं ‘आध्यात्म' की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाये!

-डॉ. जगदीश गाँधी

(1) 21 जून ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस' के रूप में घोषित:-

27 सितंबर, 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में प्रस्ताव पेश किया था कि संयुक्त राष्ट्र को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत करनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने पहले भाषण में मोदी ने कहा था कि ‘‘भारत के लिए प्रकृति का सम्मान अध्यात्म का अनिवार्य हिस्सा है। भारतीय प्रकृति को पवित्र मानते हैं।'' उन्होंने कहा था कि ‘‘योग हमारी प्राचीन परंपरा का अमूल्य उपहार है।'' यूएन में प्रस्ताव रखते वक्त मोदी ने योग की अहमियत बताते हुए कहा था, ‘‘योग मन और शरीर को, विचार और काम को, बाधा और सिद्धि को ठोस आकार देता है। यह व्यक्ति और प्रकृति के बीच तालमेल बनाता है। यह स्वास्थ्य को अखंड स्वरूप देता है। इसमें केवल व्यायाम नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और मनुष्य के बीच की कड़ी है। यह जलवायु परिवर्ततन से लड़ने में हमारी मदद करता है।'' संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून, 2014 को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने को मंजूरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव के मात्र तीन महीने के अंदर दे दी। इसी के साथ भारत की सेहत से भरपूर प्राचीन विद्या योग को वैश्विक मान्यता मिल गई थी। भारत में वैदिक काल से मौजूद योग विद्या एक जीवन शैली है जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने नया मुकाम दिलाया।

(2) प्रस्ताव रिकार्ड समय और समर्थन से पारित :-

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र में इस आशय के प्रस्ताव को लगभग सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया था। भारत के साथ रिकार्ड 177 सदस्य देश न केवल इस प्रस्ताव के समर्थक बने बल्कि इसके सह-प्रस्तावक भी बने। इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा था कि, ‘‘इस क्रिया से शांति और विकास में योगदान मिल सकता है। यह मनुष्य को तनाव से राहत दिलाता है।'' बान की मून ने सदस्य देशों से अपील की कि वे योग को प्रोत्साहित करने में मदद करें। यहाँ उल्लेखनीय है कि भारत में इससे पहले 2011 में हुए एक योग सम्मेलन में 21 जून को विश्व योग दिवस के तौर पर घोषित किया गया था। इस दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि 21 जून साल का सबसे लंबा दिन होता है और समझा जाता है कि इस दिन सूरज, रोशनी और प्रकृति का धरती से विशेष संबंध होता है। इस दिन को किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि प्रकृति को ध्यान में रख कर चुना गया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिए पिछले सात सालों में यह इस तरह का दूसरा सम्मान है। इससे पहले यूपीए सरकार की पहल पर 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गांधी के जन्मदिन यानि 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर घोषित किया था।

(3) योग स्वास्थ्य के लिए जरूरी :-

वैश्विक स्वास्थ्य और विदेश नीति के एजेंडा के तहत स्वीकार किए गए इस प्रस्ताव में कहा गया है कि योग स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सभी जरूरी ऊर्जा प्रदान करता है। श्री मोदी ने सितंबर 2014 में महासभा के सत्र में इसी आशय की बात कही थी। 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने के अलावा प्रस्ताव में कहा गया है कि योग के फायदे की जानकारियां फैलाना दुनिया भर में लोगों के स्वास्थ्य के हित में होगा। योग केवल आसान और मुद्राओं तक सीमित नहीं है। यह तो एक आदर्श जीवन शैली है, जो मानवीय उत्थान की ओर ले जाती है। आज के समय लोगों ने भौतिक जगत में बहुत ऊंचाई हासिल कर ली है, लेकिन अपने अंदर झांकने का मौका केवल भारतीय संस्कृति ही देती है। योग और ध्यान न केवल हमारा स्वास्थ्य संवर्धन करते हैं बल्कि हमें आंतरिक और मानसिक बल भी प्रदान करते हैं। काफी समय से ऋषि परंपरा और आध्यात्म को बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं। वास्तव में योग एवं आध्यात्म की शिक्षा में पूरी मानवता को एकजुट करने की शक्ति है। योग में ज्ञान, कर्म और भक्ति का समागम है।

(4) अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय:-

एक दैनिक समाचार पत्र में ‘स्कूलों में यौन शिक्षा अनिवार्य बनाए जाने की सिफारिश' शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित किया गया था। इस समाचार के अनुसार गठित की गई समिति ने स्कूलों में नाबालिगों को दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न की घटनाओं से बचाने के लिए सुझाव पेश किए हैं। इसके तहत यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाए जाने की सिफारिश की गई है, जो कि आने वाले समय में देश की बाल एवं युवा पीढ़ी को गलत दिशा में ही ले जाने का ही काम करेंगी। हमारा मानना है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को मनुष्य की ओर से अर्पित की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है - (अ) बच्चों की उद्देश्यपूर्ण शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृदय में परमात्मा की शिक्षाओं को जानकर उन पर चलने का बचपन से अभ्यास कराना न कि स्कूलों में यौन शिक्षा देकर बच्चों को तन तथा मन का रोगी बनाना।

(5) यौन शिक्षा के अनिवार्य होने से विदेशों में बढ़ी हैं समस्यायें:-

अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रान्स जैसे देशों से स्कूली बच्चों को यौन शिक्षा देने के परिणाम बुरे आ रहे हैं। इन देशों में अब यह स्पष्ट हो चुका है कि यौन शिक्षा से एच.आई.वी., एड्स आदि जैसे अनेक रोगों पर तो काबू नहीं पाया जा सका है अपितु इन देशों की बाल एवं युवा पीढ़ी पर इसका उल्टा असर हुआ है। इन देशों में यौन शिक्षा के कारण माता-पिता के जीवित रहते हुए भी लाखों बच्चे अनाथ होकर उन्मुक्त जीवन जीने को विवश हैं, जो कि एड्स जैसे महारोग को बढ़ाने का मुख्य कारण है। इसके अलावा इन देशों में विवाहित जोड़ों में दूसरी स्त्रियों तथा पुरूषों से अवैध संबंध बढ़ाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ चुकी है। इन सभ्य कहे जाने वाले पश्चिमी देशों की नकल करने में भारत भी बिना सोचे-विचारे लगा है। उन्मुक्त सेक्स की तरफ बढ़ती प्रवृत्ति के कारण विवाह जैसी पवित्र संस्था का अस्तित्व ही खतरे में पड़ता जा रहा है। |

(6) आधुनिकता के नाम पर भारत में भी पांव पसार रही हैं समस्यायें:-

भारत में भी आज कल सभी टी.वी. चैनलों एवं समाचार पत्रों में आधुनिकता के नाम पर युवक-युवतियों द्वारा बिना विवाह के लिव-इन-रिलेशन में साथ रहने के कारण युवतियों के गर्भवती होने व भ्रण हत्या करवाने आदि की घटनायें लगातार सामने आती जा रहीं हैं। इसके बावजूद भी विद्यालयों में यौन शिक्षा देने की तैयारी की जा रही है। हमारा मानना है कि बच्चों की मनः स्थिति का आंकलन किये वगैर बाल एवं युवा पीढ़ी को यौन शिक्षा देकर उनके मन-मस्तिष्क एवं चरित्र को पूरी तरह से नष्ट करने की तैयारी की जा रही है।

(7) बच्चों को योग एवं आध्यात्म का ज्ञान दें:-

परमात्मा ने मनुष्य और पशु में चार चीजें आहार, निद्रा भय व मैथुन तो समान रूप से दी है किन्तु उचित-अनुचित व गलत-सही का निर्णय करने की क्षमता केवल मनुष्य को ही दी है। यह क्षमता पशु में नही है। इसलिए बालक को आध्यात्मिक ज्ञान कराने से उसके मस्तिष्क में ईश्वरीय दिव्य प्रवृत्ति पैदा होती है। किन्तु यदि उसे आध्यात्मिक ज्ञान न हो तो उसके अंदर पशु प्रवृत्ति बढ़ जाती है और तब मनुष्य उचित-अनुचित व गलत-सही का निर्णय नहीं कर पाता है और मनुष्य का आचरण पशुवत हो जाता है। योग और आध्यात्म दोनों ही मनुष्य के तन और मन दोनों को सुन्दर एवं उपयोगी बनातें हैं। योग का मायने हैं जोड़ना। योग मनुष्य की आत्मा को परमात्मा की आत्मा से जोड़ता है। इसलिए हमारा मानना है कि प्रत्येक बच्चे को बचपन से ही योग एवं आध्यात्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए।


(8) यौन शिक्षा बच्चों को दिग्भ्रमित एवं पथभ्रष्ट करती हैः-

अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे विकसित देशों में विद्यालयों में यौन शिक्षा प्रदान करने से युवा पीढ़ी तन और मन सेे रोगी बनती जा रही है साथ ही उनका नैतिक तथा चारित्रिक पतन भी हुआ है। इस दुखदायी स्थिति से उबरने का योग तथा आध्यात्मिक शिक्षा ही एकमात्र समाधान है। हमारा मानना है कि यौन शिक्षा बच्चों को दिग्भ्रमित एवं पथभ्रष्ट करती है। यौन शिक्षा अनैतिक सम्बन्धों को बढ़ावा देती है। यौन शिक्षा में आत्मनियंत्रण की शिक्षा नहीं होती। यौन शिक्षा केवल यह बताती है कि यौन क्रिया करते हुए मां को गर्भवती होने से कैसे बचाया जा सकता है। इस तरह स्कूलों में यौन शिक्षा अनिवार्य बनाए जाने की तैयारी करना केवल अनैतिक आचरण को बढ़ावा देने वाला ही साबित हो सकता है। इस विषम सामाजिक स्थिति से अपने बच्चों को बचाने के लिए हमें स्कूलों में ‘यौन शिक्षा की जगह पर योग एवं आध्यात्मिक शिक्षा' अनिवार्य रूप से देने की अविलम्ब आवश्यकता है।


(9) प्रत्येक बच्चे को बचपन से ही योग एवं आध्यात्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए:-

हमारा यह सामाजिक उत्तरदायित्व है कि हम अभिभावकों के सहयोग से बच्चों को भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की संतुलित शिक्षा देकर उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करें क्योंकि ऐसे बालक आगे चलकर स्वस्थ व सभ्य समाज की आधारशिला रखेंगे। इसलिए मेरी भारत के सभी राज्य सरकारों के साथ ही भारत सरकार से भी अनुरोध है कि वे जगतगुरू कहे जाने वाले इस देश की संस्कृति एवं सभ्यता को ध्यान में रखते हुए अपने विद्यालयों में बच्चों को अनिवार्य रूप से यौन शिक्षा की जगह योग एवं आध्यात्म की शिक्षा दें। हमारा मानना है कि विद्यालय ऐसा हो, जिसमें हो चरित्र निर्माण। बच्चों के कोमल मन को दे, मानवता का ज्ञान। तब होगा उत्थान जगत का, तब होगा उत्थान। आध्यात्मिक चेतना जगाये सबको सही दिशा दिखलायें। बच्चे बने प्रकाश जगत का मन में ज्ञान की ज्योति जलायें, क्योंकि - विद्यालय से बढ़कर जग में कोई ना तीरथ धाम। वास्तव में बच्चों को केवल योग एवं आध्यात्म की शिक्षा देने से ही संयम, सुचिता, स्व-अनुशासन, नैतिकता, चारित्रिकता तथा आध्यात्मिकता के गुण विकसित होंगे अन्यथा मानव सभ्यता को विनाश के कगार पर जाने से रोका नहीं जा सकेगा।

-डॉ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

 

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