फिजी के प्रधानमंत्री से बातचीत (विविध)     
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

अन्याय के सामने न झुका हूं, न झुकूंगा - महेन्द्र चौधरी

सात हफ्ते तक एक अनिश्चित घेराबंदी का शिकार रहने के बाद फिजी के अपदस्थ प्रधानमंत्री श्री महेन्द्र चौधरी जब बाहर आए तो शरीर बेहद थका हुआ और कमजोर था। मगर आंखों में चमक कायम थी- प्रतिरोध की। तब से अब तक वक्त ने पलटा खा लिया है। विद्रोही डकैतनुमा जार्ज स्पीट बंदी बना लिया गया है और फिजी में लाइसेनिया करासे के नेतृत्व में सरकार चल रही है। जबकि होना तो यह चाहिए था कि महेन्द्र चौधरी के नेतृत्व वाली सरकार फिर से बहाल की जाती, पर ऐसा नहीं हुआ। लोग बार-बार यही सवाल पूछ रहे हैं कि ऐसा हिन्दुओं के साथ, भारतीयों के साथ ही क्यों होता है? दुनिया में वे जहां कहीं भी आगे आते हैं, उनके विरुद्ध कोई भी साजिश शुरु कर देता है और हम बस यूं ही देखते रह जाते हैं। फिजी में भारत क्या कर सकता था और क्या कर रहा है? इस बारे में पाञ्चजन्य के सम्पादक ने विदेशमंत्री श्री जसवंत सिंह को पत्र लिखा। उन्होंने जो उत्तर भेजा, वह संलग्न प्रकोष्ठ में दिया गया है। इस संदर्भ में हम प्रस्तुत कर रहे हैं श्री महेन्द्र चौधरी से एक विशेष साक्षात्कार जो फिजी में रोहित कुमार "हैप्पी' ने लिया-

-- फिजी से रोहित कुमार "हैप्पी'

काफी दिन श्री महेन्द्र चौधरी का पीछा करने के बाद उन्होंने मुझसे मिलना स्वीकार किया। मैंने उन्हें लाईतोका से फोन किया था। उन्होंने मुझे अगली सुबह "बा' में मिलने के लिए समय दिया। मैं वहां वक्त पर पहुंच गया और श्री चौधरी की थोड़ी देर प्रतीक्षा की। जैसे ही वे आए, मैंने उन्हें अपना परिचय दिया। वे मुस्कुराये, पर मैं महसूस कर सकता था कि उनके चेहरे पर दर्द छाया हुआ था और रंग पीला पड़ गया था। उनकी तबियत ठीक नहीं थी। मुझसे बातचीत करने से पहले डाक्टर आए, उन्हें देखा और जब वे चले गए तो हमारी बातचीत शुरु हुई।

अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं?

कमजोरी बहुत है। सात हफ्ते मैंने शायद ही कुछ खाया। दिन में एक वक्त ही खाता था।

ऐसा क्यों? एक वक्त ही खाना क्यों खाते थे?

मैं अपने ढंग से विरोध प्रदर्शन कर रहा था- मौन विरोध। और उतना ही लेता था जितना जिंदा भर रहने के लिए जरूरी था।

घेराबंदी के दौरान स्पीट के लोगों ने आपसे कैसा व्यवहार किया?

उन्होंने शारीरिक रुप से, भावनात्मक रुप से मुझ पर प्रहार किए। (स्पेट के गुण्डों ने मार-पीट के दौरान श्री चौधरी की पसलियों को क्षतिग्रस्त किया था। रो.कु.)

आप 56 दिन तक बंद रहे, क्या डर नहीं लगा?

मुझे बिल्कुल डर नहीं लगा। पर इतना जरुर है कि मेरे जीवन को अभी भी खतरा है। हालांकि हमारी सरकार में सब वर्गों का प्रतिनिधित्व था-कुल 18 सदस्यों का मंत्रिमंडल था जिनमें से 12 फिजी मूल के थे।

फिर स्पेट का विद्रोह क्यों हुआ? क्या यह महेन्द्र चौधरी के खिलाफ था या भारतीयों के खिलाफ?

यह महेन्द्र चौधरी के खिलाफ नहीं था। जनता हमारे साथ थी। जनता को मेरे नेतृत्व में वि·श्वास था। हमारी सरकार में सब वर्गों का और सब नस्लों का प्रतिनिधित्व था। यह विद्रोह निश्चित रुप से भारतीय मूल के लोगों के विरुद्ध एक साजिश थी।

न तो आपके पीछे सेना ही थी और न ही आपका समाज इतना मजबूत था कि वह आपको शक्तिशाली सहारा दे सकता। फिर आपने प्रधानमंत्री बनना क्यों चुना?

यह बात ठीक है कि भारतीय मूल के लोग वहां बहुत मजबूत स्थिति में नहीं हैं। पर जब हम सरकार बनाते हैं तो मानकर चलते हैं कि सशस्त्र सेनाएं सरकार के प्रति वफादार रहेंगी। लेकिन सेना में कुछ तत्व ऐसे थे जो वफादार नहीं निकले और उन्होंने विद्रोह में हिस्सा लिया।

अगर भारतीय मूल के लोग राजनीति में आना ही छोड़ दें तो क्या फिर भी समस्या बनी रहेगी?

समस्या ऐसी ही रहेगी, जैसी आज है। फिजी समाज में भी अनेक प्रकार के आंतरिक विभेद हैं। वहां 14 प्रांत हैं। इन विभेदों के कारण ही वे उचित प्रकार की सरकार नहीं बना पाते। भारतीय मूल के लोगों को सबके समान शत्रु के नाते प्रस्तुत किया जाता है।

पर ऐसा क्यों होता है कि ज्यादातर भारतीय कहते हैं कि वे लड़ना नहीं चाहते। लड़ाई से बेहतर है हम देश ही छोड़ देंगे?

भारतीय समुदाय बड़ा कमजोर समुदाय है। उनके पूर्वज बिहार जैसी जगहों से यहां काम करने आए थे।

घेराबंदी के दौरान क्या आपको कभी ऐसा भी लगा कि मृत्यु नजदीक आ गई है?

एक बार उन्हें ऐसा लगा कि सेना उन पर हमला कर रही है। मुझे स्पष्ट था कि अगर उन पर हमला किया गया तो वे हमें मानवीय ढाल के रुप में इस्तेमाल करेंगे। तब उन्होंने मेरे सर पर बंदूक की नोक टिकाकर मुझे घसीटना शुरु कर दिया। मैं तब भी शांतचित्त था। लेकिन जिस व्यक्ति ने मेरे सर पर बंदूक रखी हुई थी, वह बुरी तरह कांप रहा था।

आम तौर पर भारतीय शिकायत करते हैं कि उनके पास बंदूकें नहीं हैं और उन्हें बंदूकें दे दी जायें तो वे लड़ेंगे?

हमने तो अहिंसा का रास्ता ही सबसे अच्छा समझा था। हिंसा से तो हिंसा ही बढ़ती है। लड़ाई लड़ने के दो तरीके हो सकते हैं। और आप जानते हैं कि भारत में गांधी जी ने अहिंसा का रास्ता चुना था।

पर क्या आज की दुनिया गांधी की भाषा समझती हैं?

इस पर कई तरह से विचार किया जा सकता है। कई देश हिंसा के जरिए भी लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी-अपनी पसंद हो सकती है। और यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उन्हें कितने संसाधन उपलब्ध हैं और कौन सा तरीका उनके लिए सबसे अच्छा हो सकता है। हमारा एक छोटा सा द्वीप-देश है। और हमारे लिए ये बातें बहुत अलग तरह की हो सकती हैं।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन के बारे में आपका क्या कहना है?

मैं किसी भी देश की आलोचना नहीं करता। जैसा अंतरराष्ट्रीय तौर-तरीका है, वे उसके अनुसार प्रतिबंध ही लगा रहे हैं।

आपका लोगों के लिए क्या संदेश है?

बस यही कि न मैं अन्याय के सामने कभी झुका हूं, न कभी झुकूंगा।


- रोहित कुमार "हैप्पी'

[ यह साक्षात्कार फिजी के राजनैतिक तख्तापलट (2000) के समय लिया गया। ]

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सनद रहे

[ प्रधानमंत्री के तौर पर स्वागत ]

भारत, भारतवंशियों की सहायता के लिए आगे आए -महेन्द्र चौधरी

फिजी के अपदस्थ प्रधानमंत्री श्री महेन्द्र चौधरी का भारत आगमन पर एक देश के प्रधानमंत्री के रूप में शानदार स्वागत किया गया। यद्यपि भारत सरकार उनका एक औपचारिक रूप से भी प्रधानमंत्री के तौर पर स्वागत करना चाहती थी, किन्तु वर्तमान फिजी सरकार द्वारा ऐसा किए जाने पर आपसी सम्बंधों पर असर पड़ने का संकेत दिया गया। अत: ऐसा नहीं किया गया। हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री ओमप्रकाश चौटाला ने उनका दिल्ली हवाई अड्डे पर स्वागत किया। भारत सरकार की ओर से केन्द्रीय मंत्री श्री चाउबा सिंह ने उनकी अगवानी की। श्री चौधरी अपने पैतृक गांव बहुजमालपुर भी गए। जाते समय रोहतक में उनका शानदार भावभीना स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री श्री चौटाला ने श्रीचौधरी को हरियाणा की जनसंख्या के समान राशि एक करोड़ साठ लाख रुपए भी देने की घोषणा की। इस अवसर पर श्री चौधरी ने भारत से अपनी स्पष्ट भूमिका निभाने का आग्रह किया और कहा कि भारत को भारतवंशियों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए।

 

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