देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
विश्व हिंदी सम्मेलन (विविध)     
Author:भारत-दर्शन संकलन | Collections

विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्देश्य 

हिंदी को विश्व स्तर पर प्रसारित और प्रचारित करना है जिससे वैश्विक स्तर पर हिंदी को स्थापित करने में सहायता मिल सके।

प्रथम विश्व हिन्दी की संकल्पना राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा वर्ष 1973 में की गई।सम्मेलन का उद्देश्य इस विषय पर विचार विमर्श करना था कि तत्कालीन वैश्विक परिस्थिति में हिन्दी किस प्रकार सेवा का साधन बन सकती है।

महात्मा गांधी जी की सेवा भावना से अनुप्राणित हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रवेश पा कर विश्वभाषा के रूप में समस्त मानव जाति की सेवा की ओर अग्रसर हो और इसके साथ ही किस प्रकार भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र 'वसुधैव कुटुम्बकम्' देकर 'एक विश्व एक मानव परिवार' की भावना का संचार किया जा सके

सम्मेलन को विनोबा भावे का शुभाशीर्वाद भी समर्थन मिलातथा केन्द्र सरकार के साथ-साथ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात आदि राज्य सरकारों का भी समर्थन प्राप्त हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय के प्रांगण में 'विश्व हिन्दी नगर' का निर्माण किया गया। तुलसी, मीरा, सूर, कबीर, नामदेव और रैदास के नाम से अनेक प्रवेश द्वार बनाए गए। प्रतिनिधियों और अतिथियों के आवास का नाम 'विश्व संगम', 'मित्र निकेतन' 'विद्या विहार' और 'पत्रकार निवास' रखा गया। भोजनालयों के नाम भी 'अन्नपूर्णा', 'आकाश गंगा' आदि रखे गए।

सम्मेलन का उद्धाटन करते हुए अपने उद्बोधन में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने हिन्दी भाषा के लिए जो दिशा निर्दिष्ट की वह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी उतनी ही प्रासंगिक है। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कह, ''हिन्दी विश्व की महान् भाषाओं में से है।'' उन्होंने कहा 'भारत की सभी भाषाएं देश की सांस्कृतिक विरासत की समान उत्तराधिकारी हैं। ये भाषाएं सभी राष्ट्रभाषाएं हैं और इनमें से हिन्दी भारत की राष्ट्रीय भाषा है क्योंकि इस भाषा का परिवार सबसे बड़ा है।' एक से अधिक भाषा जानने के पक्ष में बोलते हुए उन्होंने कह, "प्रत्येक बच्चा अपनी मातृभाषा सीखे, राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी सीखें और अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा के रूप में अंग्रेजी सीखें।"

उनके विचार से हिन्दी को जीवन्त भाषा बनाने के लिए उसका सादा और लचीला होना आवश्यक है ताकि वह बदलती स्थितियों और नए ज्ञान को अपना सके। जहां ज़रूरी हो दूसरी भाषाओं से शब्द लेने में संकोच नहीं होना चाहिए। हिन्दी को समयानुकूल बनाने के विषय में उनका विचार था कि "हमारी भाषाएं आधुनिक तभी हो सकती हैं जबकि वे समकालीन और भविष्य के विचारों का समावेश करने की क्षमता रखेंगी। आजकल के युग में कोई भी राष्ट्र विज्ञान की उन्नति से अलग नहीं रह सकता।" "पिछले कुछ दशकों से संसार में कई नई दिशाओं में नए-नए विचारों का सृजन हो रहा है। इन विषयों में हिन्दी में बहुत थोड़ा साहित्य है और हम बहुत हद तक अनुवाद पर निर्भर हैं। अनुवाद का अपना स्थान है किन्तु वह मूल पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकता।"

सम्मेलन में काका साहेब कालेलकर ने हिन्दी भाषा के सेवा धर्म को रेखांकित करते हुए कहा था, "हम सब का धर्म सेवा धर्म है और हिन्दी इस सेवा का माध्यम है! हमने हिन्दी के माध्यम से आज़ादी से पहले और आज़ाद होने के बाद भी समूचे राष्ट्र की सेवा की है और अब इसी हिन्दी के माध्यम से विश्व की, सारी मानवता की सेवा करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।"

हिन्दी अंतर्निहित शक्ति से प्रेरित हो हमारे देश के नेताओं ने इसे अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान संवाद की भाषा बनाया। यह दिशा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने निर्धारित की जिसका देशव्यापी अनुसरण किया गया। स्वतन्त्रता संग्राम में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले अधिकांश सेनानी हिन्दीतर प्रदेशों से थे, अन्य भाषा-भाषी थे। इन सभी ने देश को एक सूत्र में बांधने के लिए एक संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी की सामर्थ्य और शक्ति को पहचाना और उसका भरपूर उपयोग किया। हिन्दी को भावनात्मक धरातल से उठाकर एक ठोस एवं व्यापक स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से और यह रेखांकित करने के उद्देश्य से कि हिन्दी केवल साहित्य की भाषा ही नहीं बल्कि आधुनिक युग में ज्ञान-विज्ञान को अंगीकार करके अग्रसर होने में एक सक्षम भाषा है, विश्व हिन्दी सम्मेलनों की संकल्पना की गई। इस संकल्पना को 1975 में नागपुर में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में मूर्तरूप दिया गया।

अभी तक नौ विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन किया जा चुका है।

  1. प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन (10-12 जनवरी, 1975), भारत
  2. द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन(28-30 अगस्त, 1976), मॉरीशस
  3. तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन (28-30 अक्टूबर, 1983), भारत
  4. चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन (02-04 दिसम्बर, 1993), मॉरीशस
  5. पांचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन (04-08 अप्रैल, 1996), ट्रिनिडाड एवं टोबेगो
  6. छठा विश्व हिंदी सम्मेलन (14-18 सितंबर, 1999), यू. के.
  7. सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन (06-09 जून, 2003), सूरीनाम
  8. आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन (13-15 जुलाई, 2007), अमरीका,
  9. नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन (22-24 सितंबर, 2012), दक्षिण अफ्रीका
  10. दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन (10-12 सितंबर 2015) भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत
  11. ग्यारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन (18-20 अगस्त 2018) मॉरीशस
  12. बारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन फीजी में प्रस्तावित है। [अतिरिक्त जानकारी अभी उपलब्ध नहीं।]
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