देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
सोऽहम् | कविता (काव्य)     
Author:चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri

करके हम भी बी० ए० पास
           हैं अब जिलाधीश के दास ।
पाते हैं दो बार पचास
           बढ़ने की रखते हैं आस ॥१॥

खुश हैं मेरे साहिब मुझ पर
           मैं जाता हूँ नित उनके घर ।
मुफ्त कई सरकारी नौकर
           रहते हैं अपने घर हाजिर ॥२॥

पढ़कर गोरों के अखबार
           हुए हमारे अटल विचार,
अँग्रेज़ी में इनका सार,
           करते हैं हम सदा प्रचार ॥३॥

वतन हमारा है दो-आब,
           जिसका जग मे नहीं जवाब ।
बनते बनते जहां अजाब,
           बन जाता है असल सवाब ॥४॥

ऐसा ठाठ अजूबा पाकर,
          करें किसी का क्यों मन में डर ।
खाते पीते हैं हम जी भर,
          बिछा हुआ रखते हैं बिस्तर ॥५॥

हमें जाति की जरा न चाह,
          नहीं देश की भी परवाह ।
हो जावे सब भले तबाह,
          हम जावेंगे अपनी राह ॥६॥

- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
  [सरस्वती 1907 में प्रकाशित गुलेरी जी की रचना]

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश