देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
ताज़े-ताज़े ख़्वाब | ग़ज़ल (काव्य)     
Author:कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar

ताज़े-ताज़े ख़्वाब सजाये रखता है
यानी इक उम्मीद जगाये रखता है

उसको छूने में अँगुलि जल जाती हैं
जाने कैसी आग दबाये रखता है

अपने दिल की सबसे कहता फिरता है
बाक़ी सबके राज़ छुपाये रखता है

अपनापन तो उसके फ़न में शामिल है
दुश्मन को भी दोस्त बनाये रखता है

उसका होना तय है, दिखना नामुम्किन
कैसी इक दीवार उठाये रखता है

काँटों के जंगल में चलकर नंगे पाँव
वो अपना ईमान बचाये रखता है

- कृष्ण सुकुमार
153-ए/8, सोलानी कुंज,
भारतीय प्रौद्योकी संस्थान
रुड़की- 247 667 (उत्तराखण्ड)

 

Previous Page   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश