देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
सर एडमंड हिलेरी से साक्षात्कार (विविध)     
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

[सर एडमंड हिलेरी ने 29 मई 1953 को एवरेस्ट विजय की थी। आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन 2007 को उनसे हुई बातचीत के अंश आपके लिए यहाँ पुन: प्रकाशित किए जा रहे है]

सर एडमंड हिलेरी निसंदेह 87 वर्षीय वृद्ध हो गए हैं फिर भी उनका हौंसला आज भी माउंट एवरेस्ट की तरह अडिग है। शेरपा तेनज़िंग नोर्गे के साथ 1953 में एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाले न्यूज़ीलैंड निवासी एडमंड हिलेरी का कदम 8850 मीटर ऊँचे एवरेस्ट पर किसी मानव का पहला कदम माना जाता है। हिलेरी सारी दुनिया के हीरो हैं परन्तु वे स्वयं को किसी प्रकार से हीरो न मानकर एक साधारण व्यक्ति मानते हैं।

हिमालय जैसी ऊँची कद-काठी के हिलेरी का दिल भी हिमालय से कम विशाल नहीं है। हिमालय के लोगों की भलाई के लिए कई स्कूल, हस्पताल व हवाई अड्डे का निर्माण करवाने वाले हिलेरी अपनी दूसरी पत्नी लेडी जून हिलेरी के साथ आकलैंड में सादगी से रहते हैं।

हिमालय ने जहाँ हिलेरी को विश्वप्रसिद्ध बनाया उसी हिमालय में हिलेरी ने अपनी पहली पत्नी और एक बेटी को खोया भी है। उनकी पहली पत्नी लुईस और बेटी बलिंडा का हेलिकाप्टर दुर्घटना में 1975 में नेपाल में देहांत हो गया था। वे उस समय हेलिकाप्टर से न्यूज़ीलैंड की सहायता से बनाए गए एक हस्पताल में काम करने के लिए उत्तरी नेपाल में स्थित लुकाला जा रहीं थीं। हिमालय हिलेरी के सुख-दुख का भागीदार रहा है। हिमालय के बारे में सर एडमंड हिलेरी कहते हैं, "मैंने वहाँ बहुत सुखद क्षण भी बिताए है और दुखद भी। व्यक्ति को अपना संग्राम जारी रखना चाहिए।"

इन दिनों अपने स्वास्थ्य की वजह से सर हिलेरी ने बातचीत करना कुछ कम कर दिया है। मेरे यह बताने पर कि आऊटलुक का यह अँक 'हिमालय विशेषाँक' होगा और उनके बिना तो 'हिमालय विशेषाँक' जैसे अधूरा ही रह जाएगा, उनका यह हिमालय प्रेम ही तो है कि बहुत अच्छा स्वास्थ्य न होते हुए भी वे सहर्ष साक्षात्कार के लिए सहमत हो गए।

हिमालय जैसे ऊँचे हिलेरी यद्यपि उम्र के इस पड़ाव पर शिथिल हो गए हैं तथापि उनके चेहरे का तेज, उनकी विनम्रता और उनकी सादगी आज भी उन्हें 'माउंट एवरेस्ट' की ऊँचाई पर रखे हुए है।

सफेद पैंट, हल्की नीली कमीज पहने हुए सर हिलेरी अपनी बैठक जहाँ हिमालय के अनेक चित्रों के अतिरिक्त बहुत से नेपाली शेरपाओं के छायाचित्र भी थे में बैठे हुए थे। हिलेरी और उनकी बगल में टंगे हिमालय के चित्र में कुछ समानता तो थी। मैं दोनों को ध्यान से देखता हूँ तो उनकी सफेद पैंट धरातल, हल्की नीली कमीज मानो नीले पहाड़ और उनका सादगी भरा, गर्विला गौरवर्ण चेहरा मानों हिमालय की हिमशिखा 'एवरेस्ट' दिखाई पड़ते थे।

मैं उनसे उनका हालचाल पूछता हूँ तो वे मुस्कुरा कर अपनी कुशलता अभिव्यक्त करते हुए मुझे बैठने को कहते हैं और मेरा कुशलक्षेम पूछना भी नहीं भूलते। थोड़ी देर अनौपचारिक बातों का सिलसिला चलता है। इतने में लेडी हिलेरी उनसे पूछती हैं कि उन्हें साफ सुनाई दे रहा है या नहीं। यदि साफ नहीं सुनाई देगा तो मैं अपनी कुर्सी और निकट कर लूंगा, वे अपनी पत्नी को निश्चिंत करते हैं और फिर लेडी हिलेरी हमें बातचीत करने के लिए अकेला छोड़ देतीं हैं।

1953 में एवरेस्ट पर विजय प्राप्ति बड़ी रोमाँचक रही होगी? पूरी धरती को अपने पाँव के नीचे रखे हुए, हिमालय को पराजित कर आप क्या सोच रहे थे?

हिलेरी कुछ क्षणों के लिए जैसे फिर से एवरेस्ट पर पहुँच जाते हैं। "एवरेस्ट से पहले मैं न्यूज़ीलैड के कई बड़े पहाड़ों का पर्वतारोहण कर चुका था पर हिमालय अनुपम था। शेरपा तेनज़िंग नोर्गे मुझसे अधिक रोमाँचित थे। शेरपा ने मुझे गले लगाकर बधाई दी। मैंनें तेनज़िंग की तस्वीर खींची पर हाँ, मैं अपनी तस्वीर लेनी जैसे भूल ही गया।"

आप एवरेस्ट के शिखर पर पहुँच कर वहाँ लगभग 15-20 मिनट ठहरे इस बीच आपने और क्या किया?

"तेनज़िंग की फोटो लेने के अतिरिक्त मैनें एवरेस्ट के आसपास के अन्य पहाड़ों की भी तस्वीरें ली। इस बीच तेनज़िंग ने माउंट एवरेस्ट पर बर्फ हटाते हुए थोड़ी सी खुदाई करके वहाँ कुछ मिठाई गाड़ दी और ईश्वर की प्रार्थना की। उसका विश्वास था कि एवरेस्ट के शिखर पर कई बार ईश्वर समय बिताने आते हैं। और यह मिठाई उन्हीं को भेंट की गई थी।"

आपको नीचे बेस से लेकर ऊपर एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचने में कई सप्ताह लगे, इस बीच आपका दैनिक जीवन कैसा था? सोते कैसे थे, खाते-पीते क्या थे?

"हमें ऊपर एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचने में कई सप्ताह लगे परन्तु हमारे पास खाने-पीने और सोने के लिए स्लिपिंग बैग व टैंट इत्यादि का सुनियोजित प्रबंध था।"

एडमंड हिलेरी और उनके नेपाली पथप्रदर्शक तेनजिंग नॉर्गे के 1953 में माउंट एवरेस्ट पर विजय पाने के पश्चात आज तक आधिकारिक तौर पर लगभग 1500 से अधिक लोग इस चोटी पर पहुंच चुके हैं। इस चोटी पर चढ़ने के क्रम में 190 लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं।

एवरेस्ट का आपका सफर रोमाँचक तो था ही परन्तु खतरनाक भी रहा होगा, क्या कभी-कभी डर भी लगता था?

हिलेरी को मानों स्पष्ट याद था वे एकदम हामी भरते हैं, "हाँ, मैं तो लगातार डरता रहा विशेषकर जिन जगहों पर बर्फ खिसक कर गिरती थी।"

इस दौरान का अपना कोई विशेष अनुभव बताएं?

"इस समय मेरा ध्यान पूर्णतया पहाड़ों की चढ़ाई पर केंद्रित था और सबसे उपयुक्त रास्ता तलाशने में भी ध्यान लगा रहता था। सबसे कठिन काम शिखर चोटी के समीप वाले 40 फीट ऊँचे मार्ग को लाँघना (जिसे अब 'हिलेरी स्टेप' कहा जाता है) था। मैं तेंजिंग की भाँति शिखर पर जहां तक हो सकेगा चढ़ने के लिए दृढ़-प्रतज्ञ था।"

नेपाली लोगों के साथ हिलेरी का संबंध तो विश्विख्यात है, जब मैं उनसे नेपाली लोगों के साथ उनके अनुभव के बारे में पूछता हूँ तो उनका चेहरा स्नेहाभाव से भर उठता है। वे अपनी गर्दन को कुर्सी से सटाकर उसे आराम देते हुए कहते हैं, "ओह, नेपाली लोगों को मैं बहुत पसँद करता हूँ। वर्तमान में वहाँ काफी राजनैतिक समस्याएं भी रही हैं लेकिन उन दिनों में नेपाली अच्छे स्वभाव वाले, उदार और बहुत परिश्रमी लोग थे।"

आपने नेपालियों के लिए बहुत से काम किए हैं, उनके बारे में बताएं।

"मैनें वहाँ अस्पताल, स्कूल, पुलों के अतिरिक्त एक हवाई अड्डे का भी निर्माण करवाया। नेपालियों के लिए काम करके मुझे बहुत आनंद की अनुभूति हुई है।"

जितना हिलेरी नेपालियों से स्नेह करते हैं, नेपाली भी उनसे उतना ही प्रेम करते हैं। नेपाली प्यार से उन्हें 'बुर्रा साहब' संबोधित करते हैं जिसका मतलब होता है 'बड़ा आदमी।' आज हिलेरी द्वारा नेपाल में खोले गए स्कूलों और हस्पतालों का प्रबंध स्वयं नेपाली शेरपा कर रहे हैं। हिलेरी कहते हैं, "मैनें कभी उन्हें यह नहीं कहा कि तुम्हें स्कूल की आवश्यकता है या तुम्हें हस्पताल की आवश्यकता है तो इनका निर्माण करवा देते हैं बल्कि उन्होंने मुझे जिस भी चीज की आवश्यकता जताई मैनें उसी का निर्माण करवाया और मुझे इसका गर्व है।"

शेरपा तेनज़िंग नोर्गे के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि वे पहले से तेनज़िंग से परिचित नहीं थे और वे पहली बार उन्हें काठमांडू में एवरेस्ट पर्वातारोहण के समय ही मिले जब तेनज़िंग उनके दल में सम्मिलित हुए थे। 'तेनज़िंग पूर्णतया हृष्ट-पुष्ट और शक्तिशाली थे और मैं स्वयं भी बहुत सक्षम था। मैनें यह निर्णय लिया कि मैं तेनज़िंग के साथ जोड़ी बनाकर पर्वातारोहण करुंगा। दूसरी ओर तेनज़िंग उस समय अच्छी तरह अँग्रेजी नहीं बोल सकते थे और मैं उनकी भाषा नहीं बोल सकता था। हमारा वार्तालाप केवल किस रास्ते से जाया जाए इत्यादि जैसे विषय तक ही पर्याप्त था। हम गहन वार्तालाप जैसे जीवन के बारे में या अन्य प्रकार की बातें कर सकने में सक्षम नहीं थे। बाद में जब मैं भारत के उच्चायुक्त के रुप में देहली में था तो मैनें तेनज़िंग को परिवर्तित पाया। तेनज़िंग का भाषाओं पर अच्छा अधिकार हो गया था। वे बहुत अच्छी अँग्रेजी बोलने लगे थे, वास्तव में उनकी अँग्रेजी उतनी ही अच्छी कही जा सकती है जितनी मेरी थी। अब हम पूर्ण रुप से वार्तालाप कर सकते थे और इसी समय मैनें तेनज़िंग के बचपन और उनके अन्य पर्वतारोहण के बारे में अधिक जाना। इन्हीं दिनों में हम घनिष्ट मित्र भी बने।"

शेरपा के बारे में हिलेरी ने काफी विस्तार से बताया था, इस बीच एक-दो बार वे बीच-बीच में रुके भी। मैं उन्हें पूछता हूँ कि यदि वे थके हों तो विराम ले लें और फिर पुन बातचीत जारी रख सकते हैं परन्तु वे मुस्कुरा कर कहते हैं कि वे बिल्कुल ठीक हैं और हम वार्तालाप जारी रख सकते हैं। हिमालय विजेता सर हिलेरी शायद आज भी आराम और विराम में विश्वास नहीं रखते। मैं उनसे पूछता हूँ कि सारा विश्व जानता है कि आपका कदम 8850 मीटर ऊँचे एवरेस्ट पर किसी मानव का पहला कदम था और इसकी पुष्टि स्वयं तेनज़िंग ने भी की थी परन्तु फिर भी कुछ शेरपा ऐसा क्यों कहते हैं कि एवरेस्ट पर पहला कदम आपने नहीं शेरपा तेनज़िंग ने रखा था?

"इसका यदि कोई कारण था तो राजनैतिक कारण था। काठमाँडू में कुछ लोग यह चाहते थे कि तेनज़िंग को एवरेस्ट पर पहुँचने वाला पहला व्यक्ति होना चाहिए था। बहुत वर्षों तक हम (हिलेरी और तेनज़िंग) इस बात पर सहमत थे कि हम यही कहेंगे कि हम दोनों लगभग एक साथ ही एवरेस्ट पर पहुँचे थे। परन्तु तेनज़िंग की मृत्यु के बाद मैनें जो हुआ था उसे बताने का निर्णय लिया। मैं तेनज़िंग से कुछ कदम आगे था परन्तु यह कहना कि मैं उससे पहले एवरेस्ट पर पहुँचा बड़ा कठिन है।" कुछ कदमों के अंतर को लेकर कौन पहले पहुँचा के मुद्दे को हिलेरी महत्व नहीं देते। कुछ क्षण रुक कर वे कहते हैं, "एवरेस्ट के शिखर पर हम एक दल के रुप में पहुंचे।"

एवरेस्ट मार्ग जिस प्रकार आज पर्वतारोहियों के लिए खुला हुआ है और वहां होने वाली दुर्घटनाओं से हिलेरी आहत हैं, इसके लिए वे नेपाली सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं, "मेरा विश्वास है कि हिमालय पर पर्वतारोहण करने वालों की सँख्या बहुत अधिक है। मैनें इस बारे में नेपाली सरकार से बातचीत भी की थी और यह सुझाव दिया था कि वे एवरेस्ट पर पर्वतारोहण करने वालों की सँख्या निर्धारित करके सीमित करें। उन्हें पर्वतारोहण से अच्छी आमदनी होती है, इसलिए वे अपनी नीती नहीं बदल पाएंगे। इसी कारण से वे पर्वतारोहण की अनुमति देते रहते हैं। अभी पिछले वर्ष एवरेस्ट पर कितनी तरह की आकस्मिक दुर्घटनाएं हुई हैं। नौ से अधिक लोगों की इन पहाड़ों में मृत्यु हो गई। शायद इसका कुछ प्रभाव पड़े। एक बार में 3 या 4 दल पर्वतारोहण करें तो उचित रहेगा।"

एवरेस्ट विजेता हिलेरी आज भी अपनी एवरेस्ट विजय को कोई अद्भुत या अनोखा काम नहीं मानते, वे कहते हैं, "मैनें एवरेस्ट विजय को कभी बहुत गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया। मेरे लिए यह एक महत्वपूर्ण अनुभव था लेकिन मैनें कभी ऐसा महसूस नहीं किया कि मैनें कुछ विशेष अनूठा कार्य किया है।"

सबसे अधिक आनन्द उन्हें गँगा ने दिया है। "गँगा में जेट बोटिंग सभी विजय यात्राओं में से सबसे अधिक आनंददायक था। जेट बोट बड़ी रोमाँचक होती हैं परन्तु गँगा पर लोगों की मैत्री ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया। लोगों का मैत्रीपूर्ण रवैया सचमुच आश्चर्यजनक था। मुझे याद है एक दिन हम गँगा तट पर अपना शिविर लगाकर रुके, वहाँ एक छोटा सा गांव था। गाँव के बाहर ही एक मकई का खेत था। हमने गाँव के मुखिया से शाम के खाने के लिए कुछ मक्का खरीदने की बात की। मुखिया ने अपने कुछ नौजवान लड़कों को जल्दी से मक्का लेकर लौटने को कहा। वे ढेर सी मक्का लेकर अतिशीघ्र लौट आए। मैनें उनसे कीमत पूछी। उन्होंने कहा कुछ नहीं! यह हमारी ओर से उपहार है। मैनें सोचा हम सब उनसे अधिक धनवान थे पर फिर भी ये लोग मुझसे यह कह रहे थे कि आपकी महान यात्रा पर यह हमारी भेंट है। मेरे प्रति ऐसा भाव था गँगा के किनारे बसे लोगों का! मैं अभिभुत हो गया।"

उन लोगों का ऐसा उदार व्यवहार क्या उनकी पूर्वी सभ्यता के कारण था या आप इसका कोई अन्य कारण मानते हैं?

"उस समय हम केवल खाने के लिए उनसे कुछ खरीदना चाहते थे, उनका कैसा व्यवहार होगा इसका मुझे जरा भी आभास नहीं था। बाद में मुझे इस बात का आभास हुआ कि मेरी गँगा जेट बोटिंग को वहाँ के लोगों ने 'पुण्य यात्रा' मान लिया था और इसी कारण से हमें जिस भी चीज की आवश्यकता होती वे हमें दे देते थे। वे लोग बड़े दयालु और उदार थे।"

निसंदेह हिलेरी भारत में अपने प्रवास को बहुत अच्छा समय मानते हैं, "भारत में जीवन बहुत अच्छा था। मैनें और मेरी पत्नी ने वहाँ बहुत अच्छा समय बिताया और हमें वहाँ बहुत आनंद आया।"

पूरे विश्व में आप घूमते रहे हैं फिर भी आप वापस न्यूज़ीलैंड आकर ही क्यों बस गए?

"न्यूज़ीलैंड मेरा घर है। मैं यहाँ पैदा हुआ। न्यूज़ीलैंड में वह सब है जो मैं पसंद करता हूँ - यहां पार करने को नदियाँ हैं, चढ़ने को पहाड़ और तैरने को समुन्दर है। यहाँ चुनौतिपूर्ण विभिन्न चीजे हैं। और, मैनें कभी कहीं और बसने के बारे में सोचा भी नहीं। हाँ, मैंने भ्रमण खूब किया है और बहुत सी सुँदर और रोमांचक जगह भी देखी हैं परन्तु न्यूज़ीलैंड मुझे पूर्णतया अनुकूल है।"


एवरेस्ट पर जाने वाले युवाओं को आप क्या कहना चाहेंगे?

बड़े लोगों के अनुभव को सुने और समझें। पहले पर्वातारोहियों के ज्ञान और अनुभव से लाभ उठाएं।

मैं सर एडमंड हिलेरी को धन्यवाद करके, उनके स्वास्थ्य के लिए शुभ कामनाएं देता हुआ विदा लेने को उठता हूँ। वे भी अपनी कुर्सी की बाजू का सहारा लेकर उठते हुए मुझसे हाथ मिलाते हैं। उठते हुए उनके पाँव एक क्षण के लिए लड़खड़ा जाते हैं मैं अपना हाथ बढ़ाकर उन्हें सहारा देता हूँ, वे मुस्कुरा कर दोहराते हैं, "व्यक्ति को संग्राम जारी रखना चाहिए।" इतने में हम दोनों की आवाज सुनकर लेडी हिलेरी भी दूसरे कमरे से बाहर आ जाती हैं और मैं उनसे विदा लेकर चल देता हूँ।


* रोहित कुमार 'हैप्पी' न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित हिन्दी द्वैमासिक 'भारत-दर्शन' के संपादक हैं।

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