अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
रणनीति (काव्य)     
Author:अनिल जोशी | Anil Joshi

छुपा लेता हूँ
अपने आक्रोश को नाखून में
छुपा लेता हूँ
अपने विरोध को दांतों में
बदल देता हूँ
अपमान को हँसी में
आत्मसम्मान पर होने वाले हर प्रहार से
सींचता हूँ जिजीविषा को
नहीं! ना पोस्टर, ना नारे, ना इंकलाब
मन के गहरे पोखर से
ढूंढ कर लाता हूँ
शब्द
पकाता हूँ उसे भीतर की आंच पर
बदलता हूँ कविता में
लाकर रख देता हूँ
मोर्चे पर

- अनिल जोशी
   उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल  
   शिक्षा मंत्रालय, भारत

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