अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
छोटी सी बिगड़ी बात को (काव्य)     
Author:अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया

छोटी सी बिगड़ी बात को सुलझा रहे हैं लोग
यह और बात है के यूँ उलझा रहे हैं लोग

चर्चा तुम्हारा बज़्म में ग़ैरों के इर्द गिर्द
कुछ इस तरह से दिल मेरा बहला रहे हैं लोग

अरमाँ नये साहिल नये सब सिलसिले नये
उजड़े हुए दायर में दिखला रहे हैं लोग

कहते हैं कभी इश्क़ था अब रख रखाओ है
फिर आज क्यों यूँ देखकर शर्मा रहे है लोग

हमने खुद अपने जुर्म का इक़रार कर लिया
अब क्यों "रज़ा" से इस क़दर कतरा रहे हैं लोग

-अब्बास रज़ा अल्वी

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश