देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
फंदा (कथा-कहानी)     
Author:सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

[फीजी से फीजी हिंदी में लघुकथा]

दुकान में सबरे से औरतन के लाइन लगा रहा। कोई बरौनी बनवाए, कोई फेसिअल कराए, कोई बार कटवाए, कोई कला कराए, तो कोई नेल-पेंट लगवाए के लिए अगोरत रहिन। दुकान के पल्ला भी खुले नई पाइस रहा कि द्वारी पे तीन औरत खड़ी अगोरत रहिन। वैसे सुक और सनिच्चर बीज़ी रोज रहे लेकिन ई रकम बिज़ी तो हम लोग कभी नहीं रहा। पतानी आज इनके सजे-सपरे के कौन भूत सवार होइगे।

'बेबी को बेस पसंद है...मम्म.. बेबी को बेस पसंद है...' गुनगुनावत जीजी कभी संजनी के देख आवे और कभी मटकत-मटकत हमार लगे आई जाए। दुकान में कस्टमा के लाइन देख के तो जनाए जीजी और भी चर्फराए गइस। सबरे से हम्मे और संजनी के एको मिनट के भी फ्री टाइम नहीं मिल पाइस रहा। संजनी के पास तो थ्रेडिंग आला लाइन लगा रहा और हम्मे बार काटे से छुट्टी कहा रहा एक कस्टमा के संगे उसके दस-बारह साल के दुलारी लड़की बैठ के अपन फोन लिए मस्त में गेम खेलत रही ओके देख के ख्याल आइस कि स्कूल के छुट्टी सुरू होइगे है और ई टायम तो सादी-बिया के सीजन भी रहे हैं। जनाए अब्सी साल औगस्त में कोई ग्रहण-वहन भी न लगा रहा।

हमार घरे फ्रीज़ा पे सादी के दुई नौता पड़ा रहा। सोचा रहा गुलाबी लहगा-सूट पहिन के जाएगा लेकिन अब तो वहूँ भी जाएके मन नई करे। एक महीना से बुखार भी समुंदर के जुवाड़ रकम चढ़े-उतरे और इधर मूड़ के पीड़ा भी छोड़े नई। पताने कोन करम करा रहा जोन ई रकम के मुसिबत झेले के पड़े। आज हम्मे काम पे आइ के बिलकुल दिल नई रहा लेकिन हमार दिल के कहाँ चली। इतने में जीजी हमार पिच्छे से बोलिस " सपना! ओ सपना, हम्मे ऊ पिंक अला ब्रश पास करना।" हम सकपकाए गिया फिर जल्दी से अपन आगे वला बॉक्स में से ब्रश निकार के जीजी के पकड़ाया।

जीजी हमार बॉस है लेकिन शुरू से हम लोगन उसे जीजी बोलते आई गिया। जीजी के आदमी के रेंटल कार अला बिज़नस रहा और ई अपन सलून खोल लीस। जीजी मुंह के फट है लेकिन दिल के अच्छी औरत है। पाइवोट पॉइंट में ट्रेनिंग के बाद, लगभग दुई साल से हम यही जीजी के संगे है। ऊ टायम हमार पास न डिग्री और न कोई एक्सपीरियंस रहा फिर भी जीजी हम्मे काम दीस और हम धीरे-धीरे काम सीख लिया। अगर जीजी हमार मदद नई करत तो आज हम घर में सड़ता और चार दिवारी ताकत आज हमार काम करे से रोहित के कितना मदद होई जाए और हम लोगन के घर के खरचा-पानी भी निकर जाए।

काम में इतना उलझाए गिया कि सबरे से मुंह में एक दाना रखे के टायम नहीं मिला। घर से भी हड़बड़ी में निकरा रहा थोरा देरी करत तो सात बजे ला बस छूट जात सोचा रहा कि काम पे जाए के कुछ बनाए के पी लेगा लेकिन यहाँ तो थूक लीले के भी मौका नई लगा। मन ए मन सोचा कि जैसे थोड़ा गैप मिली वैसे लंच ब्रेक ले लेगा। आगे देखा तो अभी भी चारों कुसीं और छोटा ला स्टूल पे कस्टमा अगोरत रहिन और कुछ तो जीजी से अपॉइंटमेंट बनाए के गइन रहिन।

हेयर कलर के गंध सूंघ-सूंघ के जनाए खाली पेट में गैस्ट्रिक फाड़ दीस और घुमड़ी भी मारे लगा। सीसा के ऊपर घड़ी में ताका तो सड़े ग्यारह बजे ला रहा। घड़ी से आँखी उठाया तो सीसा में अपन चेहरा दिखान आँखी भित्तर घुसगे रहा और निच्चे करिया गड्ढा पड़गे रहा और माथा पे जगह-जगह पिम्पल भी उठेत रहा। एक टायम हमार चेहरा आम रकम चिक्कन रहा। अपन चेहरा के इ हालत हमसे देखा नईगे। हम जल्दी से अपन आँखी सीसा पर से हटाया और जीजी से धीरे से बोला, "ब्रेक मानता रहा।" जीजी हम्मे घूर के देखिस, फिर जनाए समझ गईस कि कुछ गड़बड़ है। वैसे हम काम अला टायम हाली ब्रेक नहीं लेता हम्मे देख के मूड़ हिलाइस और घड़ी दिखाए के बोलिस, "थर्टी मिनटस, अच्चा सपना देरी नहीं करना।" हम ‘राईट' बोलके सीधा अपन पेस उठाया और खाना ला पार्सल के लिए हाथ लगाया। "ओ शिट", हमार मुह से निकरा तब याद आइस कि सबरे के महाभारत में खाना के पार्सल तो टेबल से उठाए के भूल गिया। "साढ़े चार बजे जग के कितमा मुस्किल से आलू और रोटी पकाए रहा। गेस खलास होए एक हफ्ता होइगे और सबेरे-सबरे चूला में खाना पकाओ तो आफत लगे। कोई रकम से ई हफ्ता तो निकरगे। कल तो कोई भी रक्म से रोहित से गैस मंगाए लेगा।"

बिना एक्को मिनट बर्बाद करे हम दुकान से बहिरे निकरा । सोचा चलो कुछ खरीद के खाए लई। दुकान के थोड़े दूर पे ‘राजेन्द्रस फूडहॉल' रहा राजेन्द्रस फूडहॉल भी खचाखच भरा रहा। दुई डोला में हम गाढ़ा ला दूध चा और एक समोसा खरीदा सुक के हम गोस-मास नई खाता। माता के जल चढ़ाता लेकिन आज के कचकच में ऊ भी नई करा। घर के बहिरे आम पेड़ के निच्चे पूजा ला थान भी बनाए लिया है और अबसी साल नवरात्री के पूजा वही सुनेगा। जैसे कोना पे एक टेबल खाली होइस हम जाइके बैठ गिया फिर हम पर्स में से मोबाइल निकार के मेसेज चेक करे लगा। शायद रोहित के कोई मेसेज या कॉल होई। हमार मोबाइल फोन के स्क्रीन क्रैक होई लगा रहा लेकिन काम पूरा करेत रहा। रोहित बोलिस तो है कि अपसी दिवाली के हम्मे नवा फोन खरीद के दई। फोन में खली बौडा बोनान्जा ला मेसेज भरा रहा। रोहित के न एक्को मिस-कॉल और न एक्को मेसेज रहा। पहले तो काम पे पहुंचे नई पाव कि फोन बजे लगेत रहा। और अब? सब बदलगे। इतना जल्दी कैसे अदमी लोगन बदल जाए?

खाना खाइके हम दुकान आया तो एक कस्टमा हम्मे अगोरत रहीस। हम्मे देख के मुस्की मारिस और बोलिस,"मुन्नी, अच्छा भये तुम आए गिया। हम तो जाए ला रहा।"

अंटी के देख के हम मुस्कुराय के बोला, "बैठो अंटी, हम अभी अपन पेस रख के आता।"

हम्मे ताक के अंटी बोलिस, "का भय मुन्नी? बीमार रहा का? चेहरा एकदम सूखाए गए और आज बार उठाए के ऊपर बांध लिया। विंस्टन के झटका लगा का?"

हम हँस के बोला,"कुछ नहीं अंटी,"थोड़ा बीमार रहा।"

अंटी हमार पुराना कस्टमा रहिस। अंटी हँसमुख मिजाज़ के मिलनसार औरत रहिस। आज लाल बूला ड्रेस में और बॉब-कट बार में एकदम चटक लगत रहिस। जगह-जगह कान के ऊपर और पीछे गटई में करिया डाय भी पोतान रहा। हमार आगे कुछ बोलेस पहले अंटी आइके कुरसी पे बैठ गईस और दुलार से बोलिस, "मुन्नी, जैसे लास्ट टायम हमार बार सेट करा रहा वैसेने काटना और ब्लो-ड्राई भी कर देना।"

"सेट आंटी।" इतना बोल के हम बार काटे लगा। फिर अंटी अपन स्टोरी शुरू करिस। "अरे! हमार भैया के बड़कनी लड़की के सादी है। लड़का ओवरसीज के है। अपने फेसबुक पे बतियाय लिहिन और एक दूजे के पसंद कर लीन। फेसबुक से कहीं रिसता जोड़ा जाए? अब भैया और भाभी के का चले, लड़का-लड़की राजी तो का करे काजी है न बिटिया।" "हां अंटी।" हम धीरे से बोला। हम मन में मन बोला, रोहित और हम भी तो पहेले फेसबुक फ्रेंड्स रहा। "हम्मे फुआ ला काम करे के बताइन है...'' अंटी बोलते रहिस और हम ब्लोवा चलाये दिया। इससे आगे हम्मे कुछ नई सुनान।

अंटी के जाइके बाद भी सुस्ताए के टाइम नई मिल पाइस। काम करत में दिन निकल गय सोचा रहा पांच बजे काम पर से निकर जाएगा लेकिन पाँच बजे एक टीचा के अपॉइंटमेंट रहा। हमार लास्ट बस छे बज के पंद्रह मिनट पे टाउन छोड़े। अगर बस छूट जाई तो टैक्सी बारह डॉलर से निच्चे नई लई। हाफ्ते-हाफ्ते पाँच बज के दास मिनट के आस-पास कस्टमा आइस। "लौतोका में भी आज-कल ट्रैफिक जाम होई जाए और पहले तो टप्पू-सिटी वाला लाइन में पार्किंग मिल जात रहा लेकिन अब वहूं भी पार्किंग खोजो एक काम है । सोरौं थोरा देरी होइगे!" बोलते-बोलते टीचा अपन सनग्लास निकाल के पर्स में रख लीस और आगे कुरसी पे आई के बैठ गईस।

हम छे बजे तक जीजी से तलब लेके दुकान से निकरा। वैसे जीजी सनिच्चर के तलब बाटे लेकिन अगर जरुरत पड़े तो कभी-कभी सुक के भी दे देवे। इ हफ्ता तलब में खली $80.00 रहा। सोममार के देरी में आए रहा और मंगर के तो बुखार के कारन काम पे नहीं आए पाए रहा। दिल कड़ा करके हम काम पर से निकला। अब बत्ती के बिल भरे के तो टायम नई रहा तो हम सीधा बस स्टैंड आई गिया। रोहित के मूड और घर के हालत के बारे में सोच के हमार दिल बैठ जाए हमार अन्दर सवाल उठे लगा कि हम घरे काहे जाता जहाँ पर कोई हम्मे समझे नई, हमार लिए प्यार नई, हमार इज्जत नई और अब तो बात-बात पे झगड़ा ...। हम रुक गिया और सोचे लगा। ई सब अब हम से नई होई।

दिन छोटा होए के कारण अँधेरा भी होए लगा रहा । बहिरे ही नहीं हमार भीतर भी अँधेरा छाए लगा बस-स्टैंड में भीड़-भाड़ रहा लेकिन धीरे-धीरे भीड़ बस में भर-भर के खली होत रहा। इतना भीड़-भाड़ में भी हम अकेले खड़ा रहा।

तनिक देरी में सारु - नाबूला अला बस भी आइगे और अदमी चढ़े लगिन हम भी सबके देखा-देखी बस में चढ़ गिया। थोरा देरी के खातिर हम खिड़की से मूड़ टिकाये के आँखी बंद कर लिया। अचानक से पापा के ख्याल आए गईस। मन में सोचा, काश हम पापा के बात सुन लेता और डिग्री कर लेता तो आज इ फंदा में न फसत। रोहित के बात में आइके आज ना हमार पढ़ाई पूरा भय और ना ही एक अच्छा जिंदगी मिल पाइस। रोहित के भी काम कभी रहे, कभी नई रहे। मम्मी भी समझाइस रहा, "फैसला दिल से नहीं दिमाग से करो। पढ़ लो, लिख लो, फिर देखियो।" अब कोन मुंह लेके मम्मी-पापा से अपन दुख बताई?

यही सब सोचेत रहा कि लगभग चार-पाँच साल के एक दुलार ला छोटी लड़की आइके हमार बगल में बैठ गईस। उसके माथा पे गोला ला करिया टिक्का, करिया बटन रकम चमचमात आँखी, कान में मोती से छोटे-छोटे दाने ला कनफूल और गोरा-गोरा हात में रंग-बिरंगी चूड़िया, बहुत सुन्दर लगत रहिस जैसे कोई नन्ही परी हमार बगल में आई गईस। लड़की के अम्मा बगल अला सीट पे बैठके उसके देखके मुस्कुरात रही, मानो बोले कि डरो नई हम यहीं है।

हम अपने-आप के संबाला और जल्दी से अपन आँसू पोछ के लड़की के देख के मुस्कुराया। लड़की के डिंपल ला स्माइल देखके हममें एक हल्कापन लगा फिर से हमार आँखी में पानी भरगे फिर अनायास हम अपन हाथ खिड़की पर से उठाए के अपन पेट पे रखके धीरे से सोहराया और अपन आप से धीरे से बोला, "हमार पास भी एक परी आई जई। हम दोनों के दूसरे के लिए जियेगा अब हम अकेले नई है। हममें उसके लिए जियेके पड़ी।"

फिर धीरे से हम मूड़ उठाए के इधर-उधर देखा तो बस पूरा भरगे रहा और धीरे-धीरे बसस्टैंड से निकलत रहा बहिरे दुकान और स्ट्रीट में बत्ती बरे लगा रहा और समुंदर ला ठंडा-ठंडा हवा हमार मुंह पे मारत रहा।

- सुभाशनी कुमार,
  फीजी नेशनल यूनिवर्सिटी, फीजी

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