प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
 
कुछ अनुभूतियाँ (काव्य)     
Author:डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड

दूर दूर तक फैला मिला आकाश
चारों ओर ऊँची पहाड़ियाँ
शांत नीरव वातावरण
दूर-दूर तक कोई कोलाहल न था।
शांति केवल शांति।

काश ! ऐसी शांति मेरे जीवन में भी आ पाती।
जीवन में
चारों ओर से बढ़ता हुआ कोलाहल
ऐसा लगता था मन का
भावनाओं को
जीवनेच्छा के सागर को
तीव्र वेग से
एकाएक
एक पल में ही विकीर्ण कर देगा।

---

दिन का आना
रात का जाना
सभी को नाम दिया जाता है
मात्र
‘प्रकृति के परिवर्तन' क्रम का।
फिर
मनुष्य
जीवन के ग़म और ख़ुशी को भी
सहज उतार-चढ़ाव के रूप में
क्यों नहीं स्वीकारता।

--
विडम्बना है कुछ जीवन की
जो कृत्रिमता के सुखी आवरण को उतार कर
वास्तविकताओं का
दर्शन करा देती हैं
और
शेष रह जाती है
एक तड़प
एक घुटन
और इन सबके बाद बच जाता है
भटकाव।
वही भटकाव जो मेरे जीवन की अनिवार्यता बन गया है।
लक्ष्य बन गया है
जो मंज़िल तक पहुँचा तो देगा
पर फिर उसी तरह
तड़पा कर
भटका कर।

-डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड, न्यूज़ीलैंड

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश