अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

एक सुबह  (काव्य)

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Author: मंजू रानी

आसमान में छितराये वो बादल
पेड़ो के झुरमुट से आती वो आवाजें
चीं-चीं ,काँ-काँ ,टयूँ-टयूँ, पिहू-पिहू
इन सब को शांति से सुनती वो लतायें
हवा के झोखे से हिलती वो पत्तियाँ
सोते इंसानों को जगाती वो बोलियाँ
इस मधुर-संगीत को कैद करते वो संगीतकार
नाकामयाब से ढूंढ रहे अपने साज
पर पकड़ न पाये वो ताल।

आँगन से उठता वो धुआँ
खुशबू बिखेरता वो आशियाँ
जहाँ हर चेहरा खिलता देख वो रोटियाँ
जो मिटाती तन-मन की भूख।

ये ही है वो गुलिस्तां
जिसे ढूंढ रहा पागल-सा वो इंसान
जिसे खरीद नहीं सकता कुबेर का खजाना
भौर की वो किरण
ओस की वो बूंदें
सकूँ भरी वो सांस
ये ही है वो एक सुबह।

-मंजू रानी
ई-मेल: manjurani2803@gmail.com

 

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