मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।

स्वामी दयानंद की हिंदी हस्तलिपि (विविध)

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Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

स्वामी दयानन्द की हस्तलिपि में ४ मार्च १८७९ को पंडित श्यामजीकृष्ण वर्म्मा को लिखा हुआ पत्र

स्वामी दयानन्द सरस्वती की हिंदी हस्तलिपि

स्वामी जी के उपरोक्त मूल पत्र को बिना संपादित किए यहाँ दिया जा रहा है:

पंडित श्यामजीकृष्ण वर्म्मा आनन्दित रहो तुम्हारा ता० २६ फरवरी का लिखा पत्र आया सब हाल विदित हुआ मैं बहुत शोक इस बात में करता हूं कि हमारे प्रिय बन्धु वर्ग पाताल देश निवासी लोगों को मुंबई में आ के मिल नहीं सकता क्योंकि हरद्वार में चैत्र की समाप्ति पर्यन्त ठहरने का नोटिस फाल्गुन झुकी ६ गुरुवार से दे चुका हूँ ।। और यहाँ इस बात की प्रसिद्धी भी कर चुका हूं अब इस बात को अन्यथा नहीं कर सकता ।। जब वे इस देश में लाहौर आदि के समाजों को देखने को आवेंगे तब यहां वा कहीं अत्यन्त प्रेम के साथ उन से मिलूंगा और बातचितें भी यथोचित होगी उन से मेरा आशीर्वाद कह के कुशल क्षेम प्रेम से पूँछना ।। और जो तुम ने समाज के विषय में लिखा कि न आओगे तो यहां का आर्य्यसमाज तूट जायगा क्या तुम ने समाज हरिचन्द्र चिन्तामणि के ही भरोसे किया था और जो मेरे आने जाने पर ही समाज की स्थिति है तो मैं अकेला कहां २ आ जा सकता हूं जो समाज में अयोग्य प्रधान हो उस को छुड़ा कर दूसरा नियत कर के समाज का काम ठीक २ चलाना चाहिए । कल यहां से चल के मुन्शी समर्थदान वेदभाष्य के काम पर नियत हो के मुंबई को आते हैं तुम से मिलेंगे छापे वालों और कागज वालों से ठीक २ नियम करा देना और बाबू हरिचन्द्र चिन्तामणि से भी सब पुस्तक पत्रे दिला देंना सब हिसाब किताब करा के शीघ्र खुलासा करा देना और इन को मकान आदि का क्लेश कुछ भी कभी न होने पावे। - दयानन्द सरस्वती

[उपरोक्त पत्र में कुछ भाषायी त्रुटियां हैं लेकिन सनद रहे कि स्वामी जी मूलत: गुजराती भाषी थे फिर भी उन्होंने हिंदी को अपनाया था।]

स्वामी दयानंद ने एक राष्ट्र भाषा का प्रश्न उठाया और स्वयं गुजराती भाषी होते हुए भी उन्होंने इस हेतु आर्यभाषा (हिंदी) को ही इस पद के योग्य मानअ।  स्वामीजी ने अपने भाषण, लेखन, शास्त्रार्थ एवं उपदेश आदि हिंदी में देने आरंभ किये जिससे हिंदी भाषा का प्रचार आरंभ हुआ और सबसे बढ़कर जनसाधारण के समझने के लिए हिंदी भाषा में वेदों का भाष्य किया। आपने प्रत्येक आर्यसमाजी के लिए हिंदी भाषा जानना प्राय: अनिवार्य कर दिया था।

- रोहित कुमार हैप्पी'

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