भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

दुर्लभ पांडुलिपियां (विविध)

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Author: भारत-दर्शन संकलन

विश्व हिंदी सम्मेलन के अंतर्गत 'कल, आज और कल' प्रदर्शनी में 400 वर्ष पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियां भी प्रदर्शित की गईं। इन पांडुलिपियों में 18 ग्रंथ सम्मिलित थे जिनमें श्रीमद्भगवद गीता मुख्य थी। श्रीमद्भगवद गीता की पांडुलिपि के 415 में से 24 पृष्ठ सोने के पानी से लिखे गए हैं। प्राकृतिक रंगों और सोने के पानी से छह दुर्लभ चित्र भी पांडुलिपि में उकेरे गए हैं।

इनमें पंचमुखी हनुमान और श्रीकृष्ण का विराट रूप सम्मिलित है। विश्व हिंदी सम्मेलन की प्रदर्शनी में 400 साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपि  हिंदी विवि के संस्कृत विभाग में पदस्थ डॉ. शीतांशु त्रिपाठी ने सम्मेलन के लिए विशेष तौर से पांडुलिपियों का चयन किया था। डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि कार्बन डेटिंग से यह पता लगाया गया है कि पांडुलिपियां कितनी पुरानी हैं। अनका कहना है कि ये पांडुलिपियां 350से  400 वर्ष पुरानी हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी इन पांडुलिपियों में विशेष रूचि दिखाई। उन्होंने संग्रहकर्ता डॉ. त्रिपाठी से बातचीत की व इसके बारे में जानकारी ली।

यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है। यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा. शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। उनके परिवार में इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है। उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत् 1552 (1498) की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न ग्रंथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की गई।

सबसे अधिक आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता का रहा। इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।  इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं राजस्थान की कला के मिश्रण का समावेश नजर आता है।

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