न इतने पास आ जाना .. (काव्य)

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Author: भारत भूषण

न इतने पास आ जाना मिलन भी भार हो जाये,
न इतने दूर हो जाना कि जीवन भर न मिल पाऊँ!

कहो तुम, 'हम तुम्हारे हैं'
कहूँ मैं, 'तुम हमारे हो'
न मिल पायें कभी लेकिन
नदी के ज्यों किनारे दो
पठाते सुधि लहरियों से
सदा संदेश तुम रहना
बहुत होगा मुझे इतना
कि जीवन के सहारे को
हँसी ऐसी न दो नीलाम कर दे फूल-सी दुनिया,
दरद ऐसा नहीं देना कि हिमकण-सा पिघल जाऊँ!

गगन के चाँद की छाया
लहर पर जब उतर आई
उमड़ आया तभी सागर
ललक छाती उभर आई
मिलन गति-हीन है, जड़ है
मचलकर हर लहर बोली
न सागर ही कभी सोया
न पूनम ही ठहर पाई
बढ़ाना प्यास मत इतनी दुखी हो मैं ज़हर पी लूँ,
नहीं आराम वह देना कि फागुन भी नहीं गाऊँ!

अधर पर ले दहकती लौ
हृदय में स्नेह ले गहरा
दिया देता रहा चुंबन-
रतन पर रात भर पहरा
नहीं सूरत तुम्हारी उस
घड़ी से भूल पाया हूँ
विदा मैं मुसकराते ही

कि जब दृग नीर था लहरा

तुम्हारा प्यार ही मुझको करे मजबूर जीने को,
हृदय की वेदना अपनी न कह पाऊँ न सह पाऊँ!

विरह की रात आँखों में
मिलन की कल्पना मन में
रहूँ आधा पियासा और
आधा तृप्त जीवन में
तुम्हें बस खोजने की चाह
ही वरदान हो ऐसा
कभी ले जाए मरघट में

कभी लै जाए मधु बन में

तुम्हारी याद ही मेरे हृदय में इस तरह सिमटे,
कि रूठा जो रहा उस गीत को गाकर मना लाऊँ!

- भारत भूषण

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