अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

फिर उठा तलवार (काव्य)

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Author: रांगेय राघव

एक नंगा वृद्ध
जिसका नाम लेकर मुक्त
होने को उठा मिल हिंद
कांपते थे सिन्धु औ' साम्राज्य
सिर झुकाते थे सितमगर त्रस्त
आज वह है बंद
मेरे देश हिन्दुस्तान
बर्बर आ रहा है जापान
जागो जिन्दगी की शान

अरे हिन्दी
कौन कहता है कि तू है रुद्ध
कर न पायेगा भयंकर युद्ध
युद्ध ही है आज सत्ता
आज जीवन ।

देश
संगठन कर
जातियों की लहर मिलकर
तू भयानक सिंधु,
राष्ट्र रक्षा के लिए जो धीर
फ़िर उठाले आज
संस्कृति की पुरानी लाज से
भीगी हुई तलवार ।

-रांगेय राघव

 

 

 

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