यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।

धनपतराय से मुंशी प्रेमचंद तक का सफ़र (विविध)

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Author: धनपतराय से मुंशी प्रेमचंद तक का सफ़र

मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम 'धनपत राय' था।

आपके तीन बहने थीं। उनमें दो तो मर गईं, तीसरी बहुत दिनों तक जीवित रही। उस बहन से आप 8 वर्ष छोटे थे। तीन लड़कियों की पीठ पर होने से आप तेतर कहलाये।

पिता ने 'धनपतराय' नाम दिया था तो चाचा प्यार से 'नवाबराय' बुलाते थे।

सरकार से बचने लिए नवाबराय से बने प्रेमचंद 

आप 'उर्दू' से हिन्दी' लेखन में आए। आप 'नवाबराय' नाम से उर्दू में लिखते थे। उनकी 'सोज़े वतन' (1909, ज़माना प्रेस, कानपुर) कहानी-संग्रह की सभी प्रतियाँ तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने ज़ब्त कर ली थीं। सरकार के कोपभाजक बनने से बचाने के लिए उर्दू अखबार "ज़माना" के संपादक मुंशी दयानरायण निगम ने नबाव राय के स्थान पर आपको 'प्रेमचंद' नाम से लिखना सुझाया। यह नाम आपको इतना पसंद आया कि 'नबाव राय' के स्थान पर आप 'प्रेमचंद' हो गए। अब आप 'प्रेमचंद' के नाम से लिखने लगे।

Munshi Dayanarayan Nigam who given 'Premchand' name to Dhanpatrai

छायाचित्र: धनपतराय को 'प्रेमचंद' नाम देने वाले "ज़माना"
के संपादक मुंशी दयानरायण निगम

'प्रेमचंद और उनका युग' में डॉ रामविलास शर्मा लिखते हैं, "प्रेमचन्द का नवाबराय नाम किस तरह छिना था, यह उल्लेख किया जा चुका है, लेकिन अपनी मुसीबतों पर हँसते हुए उन्होंने 'नवाब' को निरर्थक ठहराया और 'प्रेम' की ठंडक और सन्तोष का अकाट्य तर्क पेश किया।"

 

प्रेमचंद का उत्तर

एक बार सुदर्शन जी ने प्रेमचंद से पूछा -"आपने नवाबराय नाम क्यों छोड़ दिया?"

"नवाब वह होता है जिसके पास कोई मुल्क हो। हमारे पास मुल्क कहाँ?"

"बे-मुल्क नवाब भी होते हैं।"

"यह कहानी का नाम हो जाए तो बुरा नहीं, मगर अपने लिए यह घमंडपूर्ण है। चार पैसे पास नहीं और नाम नवाबराय। इस नवाबी से प्रेम भला; जिसमें ठण्डक भी है, संतोष भी।"

[हंस, मई 1937]

 

प्रेमचंद 'मुंशी प्रेमचंद' कैसे बने?

प्रेमचंद ने अपने नाम के आगे 'मुंशी' शब्द का प्रयोग स्वयं कभी नहीं किया।

'मुंशी' शब्द वास्तव में 'हंस' के संयुक्त संपादक कन्हैयालाल मुंशी के साथ लगता था। दोनों संपादको का नाम हंस पर 'मुंशी, प्रेमचंद' के रूप में प्रकाशित होता था। अतं: मुंशी और प्रेमचंद दो अलग व्यक्ति थे लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ कि प्रेस में 'कोमा' भूलवश न छपने से नाम 'मुंशी प्रेमचंद' छप जाता था और कालांतर में लोगों ने इसे एक नाम ओर एक व्यक्ति समझ लिया यथा प्रेमचंद 'मुंशी प्रेमचंद' नाम से लोकप्रिय हुए।

प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी' 

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