ना लिखे भी ना सोचे भी
ना चीख पुकार के भी
नानाविध उपकरण और विधियाँ भी बेकार
उपाय यही इस मन से मोक्ष का
अब खाली दानपात्र में बस बचा हूँ मैं ही
चुराता नहीं जिसे वहाँ से कोई,
जरूरी होता है कभी कभी देखना भी
आइने को अपने अलावा भी
- मोहन राणा
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अपने अलावा भी | कविता (काव्य) |
ना लिखे भी ना सोचे भी
ना चीख पुकार के भी
नानाविध उपकरण और विधियाँ भी बेकार
उपाय यही इस मन से मोक्ष का
अब खाली दानपात्र में बस बचा हूँ मैं ही
चुराता नहीं जिसे वहाँ से कोई,
जरूरी होता है कभी कभी देखना भी
आइने को अपने अलावा भी
- मोहन राणा
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