जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

पीछे मुड़ कर कभी न देखो | बालगीत (बाल-साहित्य )

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Author: आनन्द विश्वास

पीछे मुड़कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
उज्ज्वल कल है तुम्हें बनाना, वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।
संघर्ष आज तुमको करना है,
मेहनत में तुमको खपना है।
दिन और रात तुम्हारे अपने,
कठिन परिश्रम में तपना है।
फौलादी आशाऐं लेकर, तुम लक्ष्य प्राप्त करते जाना।
पीछे मुड़कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।

इक-इक पल है बड़ा कीमती,
गया समय वापस ना आता।
रहते समय न जागे तुम तो,
जीवन भर रोना रह जाता।
सत्यवचन सबको खलता है,मुश्किल है सच को सुन पाना।
पीछे मुड़कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।

बीहड़ बीयावान डगर पर,
कदम-कदम पर शूल मिलेंगे।
इस छलिया माया नगरी में,
अपने ही प्रतिकूल मिलेंगे।
गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों से मुश्किल बच पाना।
पीछे मुड़कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।

झंझावाती प्रबल पवन हो,
तुमको कहीं नहीं रुकना है।
बाधाऐं हों सिर पर हावी,
फिर भी तुम्हें नहीं झुकना है।
मन में दृढ़ विश्वास लिए, संकल्प सिद्ध करते जाना।

पीछे मुड़कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
नदियाँ कब पीछे मुड़तीं हैं,
कल-कल करतीं आगे बढ़तीं।
समय-चक्र आगे ही बढ़ता,
घड़ी कहाँ कब उल्टी चलतीं।
पल-पल बदल रहा है सब कुछ,संग समय के चलते जाना।
पीछे मुड़कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।

-आनन्द विश्वास
२०/१/२०२० 

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