चन्द्रमा की चाँदनी से भी नरम | गीत (काव्य)

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Author: रमाकांत अवस्थी

चन्द्रमा की चाँदनी से भी नरम
और रवि के भाल से ज्यादा गरम
है नहीं कुछ और केवल प्यार है

               ढूँढने को मैं अमृतमय स्वर नया
               सिन्धु की गहराइयों में भी गया
               मृत्यु भी मुझको मिली थी राह पर
               देख मुझको रह गई थी आह भर

मृत्यु से जिसका नहीं कुछ वास्ता
मुश्किलों को जो दिखाता रास्ता
वह नहीं कुछ और केवल प्यार है

               जीतने को जब चला संसार मैं
               और पहुँचा
जब प्रलय के द्वार मैं
               बह रही थी रक्त की धारा वहाँ
               थे नहाते अनगिनत मुर्दे जहाँ

रक्त की धारा बनी जल, छू जिसे
औे मुर्दों ने कहा जीवन जिसे
वह नही कुछ और केवल प्यार है

                मन हुआ मेरा कि ईश्वर से कहूँ
                दूर तुमसे और कितने दिन रहूँ
                देखकर मुझको हँसी लाचारियाँ
                और दुनियाँ ने बजाई तालियाँ

पत्थरो को जो बनाता देवता
जानती दुनिया नहीं जिसका पता
वह नहीं कुछ और केवल प्यार है

               काल से मैंने कहा थम जा जरा
               बात सुन मेरी दिया वह मुस्करा
               मेघ से मैंने कहा रोना नहीं
               वह लगा कहने कि यह होना नहीं

काल भी है चूमता जिसके चरण
मेघ जिसके वास्ते करता रुदन
वह नहीं कुछ और केवल प्यार है

- रमाकांत अवस्थी

 

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Posted By Ashok Kumar Ahuja   on Monday, 06-Jul-2015-03:52
एक अद्भुत वेबसाइट, दिल खुश कर दिया।
 
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