अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

मेरे दुख की कोई दवा न करो  | ग़ज़ल (काव्य)

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Author: सुदर्शन फ़ाकिर

मेरे दुख की कोई दवा न करो 
मुझ को मुझ से अभी जुदा न करो 

नाख़ुदा को ख़ुदा कहा है तो फिर 
डूब जाओ ख़ुदा ख़ुदा न करो 

ये सिखाया है दोस्ती ने हमें 
दोस्त बन कर कभी वफ़ा न करो 

इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहीं 
चंद लम्हों में फ़ैसला न करो 

आशिक़ी हो कि बंदगी 'फ़ाकिर' 
बे-दिली से तो इब्तिदा न करो 

-सुदर्शन फ़ाकिर

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