अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

हिन्दी, भारत की सामान्य भाषा (विविध)

Print this

Author: लोकमान्य तिलक

राष्ट्रभाषा की आवश्यकता अब सर्वत्र समझी जाने लगी है । राष्ट्र के संगठन के लिये आज ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे सर्वत्र समझा जा सके । लोगों में अपने विचारों का अच्छी तरह प्रचार करने के लिये भगवान बुद्ध ने भी एक भाषा को प्रधानता देकर कार्य किया था । हिन्दी भाषा राष्ट्र भाषा बन सकती है । राष्ट्र भाषा सर्वसाधारण के लिये जरूर होनी चाहिए । मनुष्य-हृदय एक दूसरे से विचार-विनिमय करना चाहता है; इसलिये राष्ट्र भाषा की बहुत जरूरत है । विद्यालयों में हिन्दी की पुस्तकों का प्रचार होना चाहिये । इस प्रकार यह कुछ ही वर्षों में राष्ट्र भापा बन सकती है ।

मेरी समझ में हिन्दी भारत की सामान्य भाषा होनी चाहिये--यानी समस्त हिन्दुस्तान में बोली जाने वाली भाषा होनी चाहिये । निःसन्देह हिन्दी दूसरे कार्यों के लिये प्रान्तीय भाषाओं की जगह तो ले ही नहीं सकती । सब प्रान्तीय कार्यों के लिये प्रान्तीय भाषाएँ ही पहले की तरह काम में आती रहेगी । प्रान्तीय शिक्षा और साहित्य का विकास प्रान्तीय भाषाऔं के द्वारा ही होगा; लेकिन एक प्रान्त दूसरे प्रान्त से मिले, तो पारस्परिक विचार विनिमय का माध्यम हिन्दी ही होनी चाहिये; क्योंकि हिन्दी अब भी अधिकांश प्रान्तों में समझ ली जाती है और बोलने तथा
चिट्ठी लिखने लायक हिन्दी थोड़े ही समय में सीख ली जाती है । इस विषय में कोई प्रान्तीय भाषा हिन्दी का स्थान नहीं ले सकती ।

- लोकमान्य तिलक

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश