अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

अच्छे दिन आने वाले हैं (काव्य)

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Author: महेंद्र शर्मा

नई बहू जैसे ही पहुंची ससुराल
तो सास ने
शुरू कर दिया
आचार संहिता का आंखों देखा हाल।
बोली- बहू सुन,
मेरी बात को ध्यान से गुन।
सुबह चार बजे उठ जाना
और नहा धोकर ही किचन में जाना।
मंदिर से आने तक मेरा करना इंतजार
फिर से सो मत जाना
वरना पड़ेगी फटकार।
बाकी रूटीन तेरे ससुर जी बताने वाले हैं,
तो बहू बोली- जी, सासू जी
लगता है अच्छे दिन आने वाले हैं।

पत्नी की बात सुनकर अटपटी,
पति बोला- बहू लगती है चटपटी।
नई बहू से गर ज्यादा चोंच लड़ाएगी,
तो जल्दी ही सत्ता से विपक्ष में बैठ जाएगी।
प्यार से काम ले,
मंदिर जाने की बजाय
घर में बहूरानी का नाम ले।
पत्नी बोली- करते हो बहू की तरफदारी
तो उसी के हाथ की
खा लेना गर्म-गर्म तरकारी।
देखते ही देखते मामला बिगड़ गया
तीनों के गुस्से का तापमान
महंगाई की तरह बढ़ गया।

इतने में बेटा आ गया
बोला- मैंने सब सुन लिया है,
अच्छे दिन नहीं आते हैं
आरोपों-प्रत्यारोपों से,
अच्छे दिन नहीं आते हैं
तानें भरी तोपों से,
अच्छे दिन नहीं आते हैं
डांट-फटकार से, और अच्छे दिन नहीं आते हैं
घर में कटु व्यवहार से।

यदि अच्छे दिन लाने ही हैं
तो एक-दूसरे का करें सत्कार,
मिलजुल कर रहें,
बांटे प्यार।

सुनते ही सब हँसने लगे
देखते ही देखते घर में
नेह के बादल बरसने लगे।

-महेंद्र शर्मा
[साभार : हास्य-व्यंग्य सरताज ]

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