दुनिया मतलब की (काव्य)

Print this

Author: द्यानतराय

दुनिया मतलब की गरजी, अब मोहे जान पडी ।।टेक।।
हरे वृक्ष पै पछी बैठा, रटता नाम हरी।
प्रात भये पछी उड चाले, जग की रीति खरी ।।१।।

जब लग बैल वहै बनिया का, तब लग चाह घनी ।
थके बैल को कोई न पूछे, फिरता गली गली ।।२।।

सत्त बाध सत्ती उठ चाली, मोह के फन्द पड़ी।
'द्यानत' कहै प्रभू नहि सुमरया, मुरदा संग जली ।।३।।

- द्यानत

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें