अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

काम बनता हुआ भी बिगड़े सब | ग़ज़ल (काव्य)

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Author: अंकुर शुक्ल 'अनंत'

काम बनता हुआ भी बिगड़े सब
अक़्ल पर पड़ गए हों पत्थर जब

आदमी हो तो वो नज़र आओ
बात करने का पहले सीखो ढब

जबसे मज़हब का राग पनपा है
काम की सब गईं हैं बातें दब

वो सुनेगा सभी की फ़रियादें
गर दुआओं से हों शनासा लब

क्या ये है बोलने की आज़ादी
बोल दो जो जिसे रहा हो फब

आपदाएँ रहीं हैं पूछ सुनो
आप सुधरोगे ये बताओ कब

हो गई गुमशुदा हया सारी
उफ़ ये टिक टॉक जो चला है अब

-अंकुर शुक्ल 'अनंत'

मोबाइल : 7398929202
ई-मेल : shuklaankur12350@gmail.com

 

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