प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।

टंगटुट्टा (कथा-कहानी)

Print this

Author: मृणाल आशुतोष

घर का माहौल थोड़ा असामान्य सा हो चला था। परसों ही राजेन्द्र ने किसी दुखियारी से शादी करने की बात घर पर छेड़ दी थी। छोटे भाइयों को तो आश्चर्य हुआ, पर बहुओं की आवाज़ कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गई। बेचारी बूढ़ी माँ समझाने की कोशिश कर थककर हार मान चुकी थी।

बहुओं के तीखे बाण से कलेजा छलनी हो रहा था, पर कान में रूई डालने के सिवा कोई चारा भी तो नहीं था।

शाम में तमतमाते वीरेंद्र का प्रवेश सीधा माँ की कोठरी में हुआ। बिना देर किए दोनों बहुएँ दरवाजे से चिपक गईं।

"माँ, यह हो क्या रहा है घर में? भैया पागल तो नहीं हो गए हैं।"

"बेटा,इसमें पागल होने वाली क्या बात है?"

" इस उम्र में शादी? लोग क्या कहेंगे? मुहल्ले वाले थूकेंगे हम पर!" गुस्से में वह लाल-पीला हो रहा था।

"बेटा, उसने कोई निर्णय लिया है, तो सोच-समझकर कर ही लिया होगा न! उस दुखियारी के बारे में भी तो सोच।"

"हाँ, कुछ ज्यादा ही सोचकर लिया है। अपना तो दोनों टाँग टूटा हुआ है ही और ऊपर से बुढ़ापे में एक औरत का जिम्मेदारी लेने चले हैं!"

"बीस साल से बिना टाँग के ही चाय बेचकर हमारा-तुम्हारा खर्चा चला रहा है न! थोड़ा कलेजे पर हाथ रखकर सोचना कि असली टंगटुट्टा वह है या...!"

-मृणाल आशुतोष
समस्तीपुर, बिहार, भारत 
मोबाइल:91-8010814932, 9811324545
ईमेल: mrinalashutosh9@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश