अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

गुर्रमकोंडा नीरजा की कविताएं  (काव्य)

Print this

Author: गुर्रमकोंडा नीरजा

तीन शब्द

तीन शब्द----
हाँ! तीन ही शब्द

नफरत!
शक!!
डर!!!

बोए और काटे जा रहे हैं हर वक्त
रिश्तों की जड़ों में सींचकर ज़हर!

--- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा 


#


खबरदार!

तुम रक्षक हो या भक्षक?
मासूमों की चीख सुनकर भी
तुम्हारे कण नहीं खुलते!

कब तक बहलाओगे
झूठी कहानियों से?

शिकारी को छोड़कर
शिकार को लूट रहे हो !
इन्साफ माँगने वालों को सजा दे रहे हो?

सारे शिकार एकजुट हो रहे हैं,
तुम्हारे खिलाफ बगावत तय है!

- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा 
  सह-संपादक 'स्रवंति' 
  असिस्टेंट प्रोफेसर

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश