यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।

दो छोटी कविताएँ (काव्य)

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Author: दिनेश भारद्वाज

दुनिया 

सभी मुझे समझाने लगे
ज़रा ठोकर क्या लगी
ऐरे गैरे सभी मुझे समझाने लगे
हाल बेहाल है यारों
अंधे भी रास्ता मुझे दिखाने लगे।

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विडंबना 

भागता रहा उम्र भर
सभी भाग रहे थे
मैं भी भागता रहा उम्र भर।
मन की शांति पाने को
आश्रम, मंदिर और डेरों की
खाक छानता रहा उम्र भर।
उम्र कैद की सजा काट रहा है वह आज,
जिसको मैं गुरु मानता रहा उम्र भर।

--दिनेश भारद्वाज, न्यूज़ीलैंड

[साभार: सफेद बादलों के देश में,  संपादन प्रीता व्यास, बोधि प्रकाशन]

 

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