भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

गवैया गधा (बाल-साहित्य )

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Author: विष्णु शर्मा

एक धोबी के पास एक गधा था। गधा हर रोज मैले कपड़ों की गठरी पीठ पर लादकर घाट पर जाता और संध्या समय धुले कपड़ों का गट्ठर लेकर घर लौट आता। यही उसकी दिनचर्या थी। रात में धोबी उसे खुला छोड़ देता।

एक रात गधा घूम रहा था। वहीं कहीं से घूमता हुआ एक सियार आ पहुंचा। गधे और सियार में बातचीत हुई। दोनों ने एक-दूसरे का हालचाल पूछा, फिर दोनों मित्र बन गए। गधा और सियार दोनों बातचीत करते हुए एक खेत में पहुंचे। खेत में ककड़ियां लगी थीं। दोनों ने जी भरकर ककड़ियां खाईं। ककड़ियां बहुत स्वादिष्ट लगीं।

अब तो गधा और सियार दोनों प्रतिदिन रात में ककड़ियां खाने के लिए उस खेत में जाने लगे। दोनों जी भरकर ककड़ियां खाते और फिर चुपचाप खेत से निकल जाते। मीठी-मीठी ककड़ियां खाने के कारण दोनों मोटे-ताजे हो गए। साथ ही उन्हें ककड़ियां खाने की लत भी लग गई। जब तक ककड़ियां खा न लेते थे, उन्हें चैन नहीं पड़ता था।

धीरे-धीरे कई मास बीत गए। एक दिन चांदनी रात थी। आकाश में चंद्रमा अपनी चाँदनी बिखेर रहा था। गधा और सियार दोनों अपनी आदत के अनुसार खेत में जा पहुंचे। दोनों ने जी भरकर ककड़ियां खाईं। गधा जब ककड़ियां खा चुका, तो बोला, "अहा, कितनी सुंदर रात है, आकाश मे चंद्रमा हँस रहा है। चारों ओर दूध की धारा सी बह रही है, ऐसी सुंदर रात मे तो मेरा मन गाने को कर रहा है।"

गधे की बात सुनकर सियार बोला, "गधे भाई, ऐसी भूल मत करना। गाओगे तो, खेत का रखवाला दौड़ पड़ेगा। फिर ऐसी पूजा करेगा कि छठी का दूध याद आ जाएगा !"

गधा गर्व के साथ बोला, "वाह, मैं क्यों न गाऊं? मेरा कंठ- स्वर बड़ा सुरीला है। तुम्हारा कंठ-स्वर सुरीला नहीं है, इसीलिए तुम मुझे गाने से मना कर रहे हो। मैं तो गाऊंगा, अवश्य गाऊंगा।"

सियार बोला, "गधे भाई, मेरा कंठ स्वर तो जैसा है, वैसा है। तुम्हारे सुरीले कंठ स्वर को सुनकर खेत का रखवाला प्रसन्न तो नहीं होगा, डंडा लेकर अवश्य दौड़ पड़ेगा। पीठ पर इतने डंडे मारेगा कि आंखें निकल आएंगी।"

सियार के समझाने का प्रभाव गधे के ऊपर बिल्कुल नहीं पड़ा। वह बोला, “तुम मूर्ख और कायर हो। मैं तो गाऊंगा, अवश्य गाऊंगा।"

गधा सिर ऊपर उठाकर रेंकने के लिए तैयार हो गया। सियार बोला, “गधे भाई, जरा रुको। मुझे खेत से बाहर निकल जाने दो, तब गाओ। मैं खेत से बाहर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा।" सियार इतना कहते ही खेत से बाहर भाग लिया। गधा रेंकने लगा। एक बार दो बार और तीन बार गधे की आवाज चारों ओर गूंज उठी। खेत के रखवाले के कानों में भी पडी। वह हाथ में डंडा लेकर दौड़ पड़ा।

रखवाले ने खेत में पहुंचकर गधे को पीटना आरंभ कर दिया। उसने थोड़ी ही देर में गधे को इतने डंडे मारे कि वह बेदम होकर गिर पड़ा।

गधे के गिरने पर रखवाले ने उसके गले में ऊखल भी बांध दी।

गधे को जब होश आया, तो वह लंगड़ाता-लंगड़ाता ऊखल को घसीटता हुआ खेत के बाहर गया। वहां सियार उसकी प्रतीक्षा कर रहा था । वह गधे को देखकर बोला, "क्यों गधे भाई, तुम्हारे गले में यह क्या बंधा हुआ है? क्या तुम्हारे सुरीले स्वर पर रीझकर खेत के रखवाले ने तुम्हें यह पुरस्कार दिया है?"

गधा लज्जित हो गया। वह नीची गरदन करके बोला, “अब और लज्जित मत करो, सियार भाई! झूठे अभिमान का यही फल होता है। अब तो किसी तरह इस ऊखल को गले से छुड़ाकर मेरे प्राण बचाओ।"

सियार ने रस्सी काटकर ऊखल को अलग कर दिया। गधा और सियार फिर मित्र की तरह घूमने लगे, पर गधे ने फिर कभी अनुचित समय पर गाने की मूर्खता नहीं की।

शिक्षा : 
मूर्ख मनुष्य का साथ नहीं करना चाहिए। जो झूठा गर्व करता है, उसे हानि उठानी पड़ती है। बोलने के पहले समय और कुसमय का विचार कर लेना चाहिए। चालाक आदमी से बचें, वह बलवान को भी मूर्ख बना देता है।

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