देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

सरकारी नियमानुसार  (कथा-कहानी)

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Author: डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

राकेश कुमार कानपुर में तीन सालों से फ़ूड सप्लाई इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे। बड़ी मेहनत के बाद नौकरी मिली थी सो नौकरी करने से अधिक नौकरी बचाने में विश्वास करते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके नौकरी सिद्धांत के अनुसार नौकरी करने की नहीं अपितु बचाने की वस्तु है। समय के पाबंद और अधिकारियों के प्रिय। बँधी - बंधाई अतिरिक्त आय की पूरी श्रृंखला से अच्छी तरह वाक़िफ़ पर किसी तरह के विरोध में दिलचस्पी नहीं। अपना हिस्सा चुपचाप ले लेते। पहली बार जब धर्मपरायण पत्नी राधिका ने टोका तो उसे समझाते हुए बोले - "देखो राधिका, इस तरह की पाप की कमाई में मुझे भी दिलचस्पी नहीं है। मैं खुद नहीं चाहता ऐसे पैसे। लेकिन क्या करूं? ऊपर से नीचे तक पूरी श्रृंखला बनी है। सब का हिस्सा निश्चित है। बिना कहे सुने सब के पास ये पैसे हर महीने पहुँच जाते हैं। सब ले लेते हैं और जो ना ले वह सब की आँख की किरकिरी बन जाता है। अधिकारी और साथी उसे परेशान करने लगते हैं। फ़र्जी मामलों में फ़साने लगते हैं। अब तुम ही कहो चुपचाप नौकरी करूं या अकेले पूरी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ें?"

इसपर सहमी पत्नी पूछती है - तो क्या ईमानदारी से काम करना पाप है ? क्या कहीं कोई सुनवाई नहीं ?" राकेश उसे फिर समझते हुए कहते -"अरे राधिका, तुम पढ़ी-लिखी हो और ऐसी बातें करती हो? ईमानदारी कोई अतिरिक्त गुण नहीं है । अगर कोई कहे कि मैं ईमानदारी से काम करता हूँ तो उस महानुभाव को यह समझाना चाहिए कि भाई जिसने तुम्हें नौकरी दी है उसने ईमानदारी से काम करने के लिये ही दी है। यह आप का कोई विशेष गुण नहीं है। इसलिए बात करते समय ईमानदारी को विशेषण के रूप में प्रस्तुत करना ही बहुत बड़ी बेईमानी है। मैं नियमों से बंधा हुआ एक मामूली प्रशासनिक कर्मचारी हूँ। इतना ‘मामूली' कि मामूली शब्द भी हमसे अधिक ताकतवर है। व्यवहार और नियम के बीच एक संतुलन बनाना पड़ता है। पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं रख सकता। बाकी जैसा कहो, कल नौकरी चली जाये या मेरे साथ कोई ऊँच-नीच हो जाये तो...."

राकेश ने अपनी बात पूरी नहीं की थी कि राधिका ने उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया। राधिका की आंखें छलक आयीं थीं। वह कुछ नहीं बोली और इन दो-तीन सालों में फिर कभी इस बात पर कोई चर्चा भी नहीं की। इस तरह उसने भी राकेश की प्रशासनिक ईमानदारी के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया था ।

सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन राकेश ने राधिका को बताया कि वह यू.पी., पी.सी. एस. की परीक्षा फिर से देना चाह रहा है। फ़ूड सप्लाई इंस्पेक्टर की पोस्ट क्लॉस वन की नहीं थी, और अब राकेश क्लास वन की नौकरी चाहता था। उसके कई दोस्त क्लास वन के अधिकारी थे, उनसे मिलने पर राकेश हीनता के भाव से भर जाता था। यह हीनता उसे अंदर ही अंदर कचोटती, अतः उसने निर्णय लिया कि वह एक बार फिर मेहनत करेगा और अपनी किस्मत आजमायेगा। राधिका को भला इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी लेकिन थोड़ी आशंका के साथ उसने पूछा - "सुबह से शाम तक तो आप फील्ड में रहते हैं, पढ़ाई कब करेंगे? सिर्फ पाँच महीने हैं हाथ में नौकरी और पढ़ाई दोनों कैसे मैनेज करेंगे?"

राधिका की बात सुनकर राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा--"मेरी भोली बीबी, मैं ऑफिस में छुट्टी की अर्जी डाल दूँगा। लीव विदाउट पे की अर्जी। अर्थात बिना वेतन की छुट्टी। ऐसी छुट्टी मिल जायेगी और फिर परीक्षा खत्म होते ही ऑफिस वापस ज्वाइन कर लूंगा।"

राधिका बोली--"तब ठीक है, आप चिंता न करें ये पाँच महीने मैं घर खर्च बचत के पैसों से चला लूंगी। आप अच्छे विद्यार्थी की तरह सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना। घूमना-फिरना सब बिलकुल बंद।" और दोनों खिलखिला पड़ते हैं।

अगले दिन ऑफ़िस जाने से पहले ही राकेश ने छुट्टी का आवेदन पत्र तैयार कर लिया था। जल्दी- जल्दी नाश्ता खत्म करके वह ऑफ़िस के लिये निकल पड़ा लेकिन देर रात जब वह वापस आया तो उदास लग रहा था । मानों उसके अरमानों के पंख क़तर दिये गये हों । राधिका उसका चेहरा देखते ही समझ गई कि कोई बात है जिसने राकेश को परेशान कर रखा है। पानी का गिलास आगे बढ़ाते हुए वह बोली--"आप कपड़े बदल लीजिए मैं चाय बना देती हूँ।" और बिना राकेश के जबाब की प्रतीक्षा किये वह रसोई घर की तरफ़ बढ़ गई । थोड़ी देर में जब वह चाय की प्याली लेकर वापस आयी तो देखती है कि राकेश वैसे ही सोफे पर बैठा है। बिलकुल चुप और उदास । उसकी उदासी राधिका के लिए गर्मियों के उमस भरे दिनों की तरह बेचैन करने वाली थी। राधिका ने चाय की प्याली पकड़ाते हुए पूछा - "क्या बात है? आप कुछ परेशान लग रहे हैं।"

राकेश मानों इस प्रतीक्षा में ही था कि कब राधिका उससे पूछे और वह अपनी परेशानी उसे बताये वैसे ही जैसे उमड़ते बादल बरसने को बेचैन रहते हैं। राधिका को अपने पास बिठाकर उसने कहा -"तुम्हें तो पता ही है कि आज सुबह ही मैंने छुट्टी के लिये आवेदन तैयार कर लिया था। रस्तोगी साहब जब ऑफ़िस आये तो मैंने उन्हें सारी बात बताकर आवेदन पत्र उनके सामने रख दिया। उन्होंने कहा कि इतनी लंबी छुट्टी नहीं मिल सकेगी। दस-बीस दिन की छुट्टी वो दे सकेंगें, इससे अधिक नहीं। अब तुम ही बताओ मूड खराब होगा कि नहीं। ऊपर से मैं बिना वेतन की छुट्टी माँग रहा था, इसमें किसी को क्या समस्या हो सकती है? कहते हैं स्टाफ कम है। मैंने जब इनसिस्ट किया तो वो साला रस्तोगी, कहता है क्लॉस वन की नौकरी का इतना मन हो तो ये नौकरी छोड़ दो, फिर छुट्टी ही छुट्टी। इतना मन खराब हुआ कि वहीं साले को दो हाथ लगाऊँ।"

इतना कहते-कहते राकेश का चेहरा आक्रोश से तमतमाने लगा। राधिका ने राकेश का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा -"आप गुस्सा न हों। वो रस्तोगी जी तो शुरू से आप से जलते हैं। आप जिंदगी में आगे बढ़े, नाम कमायें, यह तो वे कभी नहीं चाहेंगे । आप शांति से सोचिये कोई रास्ता जरूर निकल आयेगा। ऊपर के किसी अधिकारी से बात कीजिए, सब ठीक हो जायेगा। जो कीजिये सोच समझ कर कीजिए और सरकारी नियमानुसार कीजिए।"

राधिका के प्रेम में पगे इन शब्दों को सुनकर राकेश का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ। चाय की प्याली से एक घूँट हलक के नीचे उतारकर उसने कहा -"तुम ठीक कहती हो। सरकारी नियमानुसार ही कुछ करूंगा।"

यह कहते हुए राकेश किसी गहरी सोच में डूबा हुआ लगा। मानो मन ही मन वह कोई तरकीब भिड़ा रहा था । उसे यूँ सोच में डूबा देखकर राधिका ने पूछा -"तो क्या कोई तरकीब सोच रखी है आपने?"

राकेश मुस्कुराते हुए बोला--"तरक़ीब तो है राधिका, थोड़ी टेढ़ी है पर है सरकारी नियमानुसार ही। वो तुमने सुना है ना कि जब घी सीधी उँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी कर लेनी चाहिए। मैं तो उँगली भी टेढ़ी नहीं करूंगा बल्कि घी को ही गरम कर दूंगा, वो भी सरकारी नियमानुसार।" इतना कहते ही राकेश हँसने लगा।

राधिका को कुछ समझ नहीं आया। उसने पूछा -"आप क्या करने वाले हो? मुझे बताइए।" लेकिन राकेश ने राधिका की बात को अनसुना करते हुए कहा - "चलो अब कपड़े बदल लेता हूँ, तुम खाना लगा दो।"

इतना कहकर वह बेड रूम में चला गया । राधिका का मन अंजान आशंकाओं से भरा हुआ था। लेकिन वह असहाय थी। मन मार के वह खाना लाने किचन में चली गई। उसने उस दिन कई बार राकेश की भावी योजना का पता लगाने का प्रयास किया लेकिन राकेश एकदम घाघ था। राधिका अंत में ऊबकर सो गई।

अगली सुबह राधिका ठीक वक्त पर उठ गई लेकिन उसे सिर भारी लग रहा था फिर भी उसने रोज की तरह चाय बनाई और राकेश को उठाने के बाद खुद नाश्ता बनाने किचन में चली गयी। नहा-धोकर जब राकेश नाश्ता करने के बाद ऑफिस जाने के लिए तैयार हुआ तो राधिका उसके पास आकर बोली--"देखिये कोई लड़ाई-झगड़ा मत करना और...... !" राधिका अपनी बात कर ही रही थी कि राकेश ने उसके मुँह पर हाथ रखते हुए कहा - "तुम बिलकुल परेशान मत होओ। मैं कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं करने वाला। सिर्फ अपना काम करूंगा वो भी सरकारी नियमानुसार।"
इतना कहते हुए उसने राधिका को चूम लिया। राधिका शर्म से लाल हो गई। अपने आप को राकेश से अलग करते हुए राधिका बोली -"सुबह -सुबह बदमाशी मत करो। जाओ ऑफिस जाओ।"
राकेश भी बैग उठाकर बाहर निकल गया। बाहर खड़ी अपनी मोटरसाइकिल को किक मारते हुए राकेश ने कहा -"शाम को थोड़ी देर से आऊँगा, परेशान मत होना।"

इतना कहकर वह अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो राधिका की आँखों से ओझल हो गया। राधिका के मन में कई सवाल थे, अपनी बेचैनी वो व्यक्त नहीं कर पा रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि राकेश के मन में क्या चल रहा है। जब आशंकाएँ बढ़ती हैं तो विश्वास दरकने लगता है। राधिका आज भी रोज की ही तरह सारे काम निपटा रही थी, बस आज पूजा घर में आधे घंटे की जगह पूरे दो घंटे बिताये।

दोपहर को सोचते-सोचते ही कब आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला। जब आँख खुली तो शाम के पाँच बज चुके थे। मन अनमना-सा था फिर भी अपने लिये चाय बनाकर डायनिंग टेबल पर बैठी ही थी कि दरवाज़े की घंटी बजी। राधिका ने दरवाज़ा खोला तो सामने अपने बड़े भाई हेमंत को खड़ा पाया हेमंत को देख राधिका की खुशी का ठिकाना न रहा।

हेमंत पेशे से सरकारी वकील थे, इलाहाबाद हाईकोर्ट में लेकिन कोर्ट-कचहरी के काम से जब भी कानपुर आते तो अपनी बहन से मिलना नहीं भूलते। हेमंत को चाय नाश्ता देने के बाद राधिका ने राकेश के ऑफिस वाली परेशानी बतायी और अपनी आशंकाओं से अवगत कराया।

हेमंत ने अपनी बहन की बात ध्यान से सुनी और फिर उसे ढांढस बंधाते हुए बोले--"तुम बिलकुल चिंता मत करो। सरकारी नौकरी बड़े मुश्किल से मिलती है और जितने मुश्किल से मिलती है उसके लाख गुना अधिक मुश्किल से जाती है। कोई राकेश का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। तुम नाहक परेशान हो, फिर हम सब हैं तुम लोगों के साथ। क़ानून कर्मचारियों के हक में मजबूती से खड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को उसके खिलाफ आरोप पत्र के अभाव में 90 दिन से अधिक निलंबित भी नहीं रखा जा सकता। और इस निलंबन की अवधि में भी उसे एक निर्धारित वेतन राशि मिलती रहती है। यह सब व्यवस्था इसीलिए है ताकि किसी कर्मचारी के साथ कोई अन्याय न हो पाए। सूचना का अधिकार जैसा कानून है जो एक निश्चित अवधि में सरकारी विभागों को माँगी गई सूचना प्रदान करने के लिए बाध्य करता है। तुम कोई चिंता मत करो। किसी ने राकेश की तरफ़ आँख भी उठाई तो मैं उसे कोर्ट में नंगा कर दूंगा। जब तक तेरा भाई है तुझे कोई चिंता करने की ज़रूरत नहीं। राकेश खुद समझदार है। वह जो करेगा सोच समझ कर ही करेगा। चाणक्य है वह चाणक्य।"

हेमंत की बातों से राधिका का तनाव कुछ कम हुआ। हेमंत को 8 बजे की ट्रेन से इलाहाबाद वापस जाना था इसलिए वह जाने के लिये निकल पड़ा। उसे लक्ष्मण बाग ऑफिसर्स कालोनी में किसी से मिलना भी था। उसके जाने के बाद राधिका रात के खाने की तैयारी में लग गई। रात के साढ़े नौ बजे चुके थे पर राकेश अभी तक लौटा नहीं था। राधिका का मन घबरा रहा था और उल्टे-सीधे ख्याल मन में आ रहे थे। इसी बीच राकेश की मोटरसाइकिल की आवाज उसके कानों में पड़ी। वह दौड़कर बाहर पहुँची तो राकेश मोटरसाईकिल खड़ी कर रहा था। उसे देख राधिका बहुत खुश हुई। उसका बैग लेकर वह बोली--"आज़ इतनी देर क्यों? आप ने सुबह कहा था कि देर होगी फिर भी मुझे लगा था पाँच बजे तक आप आ जायेंगे। हेमंत भाई साहब भी आये थे, आप का इंतजार करके चले गये।"

राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा-"चलो अंदर चलकर बात करते हैं। देर से आने पर घर में नहीं घुसने दोगी क्या ?"

दोनों अंदर आये। राकेश ने नहाकर कपड़े बदले और खाने से पहले चाय बनाने के लिए कहा। राधिका झट से चाय बनाकर ले आयी। फिर राकेश के बगल बैठकर बोली-"अब बताओ इतनी देर क्यों हुई?"

राकेश राधिका के गालों को चूमते हुए बोला--"आज कुछ व्यापारियों के यहाँ छापे मारे। खाद्य वस्तुओं के नमूने लिये। इन्हीं सब में देर हो गई। कई दिनों से शिकायत मिल रही थी। मावे और दूध में मिलावट की बात थी। हद है राधिका, ये व्यापारी भी ना मिठाइयों की मोटी क़ीमत लेते हैं, उसके बावजूद मावे और दूध में हानिकारक यूरिया और सेंथेटिक मिलाते हैं। नैतिकता और ईमानदारी तो जैसे किस्से कहानियों की बात हो गईं हो। आज जब छापा डाला तो घिघियाने लगे, लेकिन मैंने किसी की एक न सुनी। रस्तोगी तो मुझे धमकाने और परिणाम भुगतने की धमकी देने से भी पीछे नहीं हटा लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी। सच्चाई और धर्म की लड़ाई में जो होगा अब देखा जायेगा।"

राकेश की बातें और उसके इरादे राधिका कुछ-कुछ समझने लगी थी। वह बोली--"यह मिलावट कोई एक दिन में शुरू तो नहीं हुई होगी। तीन साल में पहले तो कभी आप ने कोई छापेमारी नहीं की और न ही नैतिकता और धर्म की कोई दुहाई दी। फिर हर महीने इन्हीं व्यापारियों से मिलने वाली मोटी रकम भी आप को लेने में कोई गुरेज़ नहीं रहा बल्कि आप ने ही तो बताया था कि पूरी श्रृंखला है ऊपर से नीचे तक। अगर यह सच है तो आज आप की अंतरात्मा धर्म और नैतिकता की तरफ़ कैसे और क्यों मुड़ गई? मुझे यह पहेली, यह व्यवहार समझ नहीं आ रहा। आप मुझे सब कुछ साफ़-साफ़ बताइये कि आप के दिमाग में क्या चल रहा है। पत्नी हूँ आप की, मुझसे कुछ छुपाने की ज़रूरत नहीं है आपको। बोलिये क्या है आप के मन में?"

राकेश ने राधिका को अपनी बाहों में कसते हुए कहा--"तुम तो जानती ही हो कि अवकाश वाले आवेदन पर कैसा तमाशा ऑफ़िस में हुआ। अब रस्तोगी जैसे लोगों को सही तरीके से ठीक तो किया नहीं जा सकता, इसलिए मैंने एक प्लान बनाया। शहर के कुछ व्यापारियों के यहाँ आज छापा मार करके खाद्य पदार्थों के नमूने जाँच के लिये भेज दिये। व्यापारियों में हड़कंप मच गया क्योंकि ये लोग अपने संगठन के माध्यम से हर महीने एक मोटी रकम नियमित रूप से पहुंचाते रहते हैं। इस तरह की कार्यवाही का इनको कोई अंदेशा ही नहीं था। अब ये व्यापारी रस्तोगी की ऐसी की तैसी कर देंगे। उन्होंने हंगामा किया भी, इसीलिये शाम को रस्तोगी मुझे परिणाम भुगतने की धमकी भी देने लगा था। मैंने भी उसे सच्चाई और ईमानदारी का ऐसा लेक्चर झाड़ा कि महाराज किचकिचा के रह गये। फिर मैंने गाड़ी निकाली और घर चला आया। आज सभी लोग अभी तक ऑफिस में ही थे, किसी को काटो तो खून नहीं। बस यही हुआ आज।"

राकेश की बातें सुनकर राधिका उठकर बैठ गई और बोली--"सब आप से नाराज़ हो गये होंगे। अब कहीं उन्होंने आप को नौकरी से निकाल दिया या आप के खिलाफ़ ऊपर शिकायत की तो क्या होगा?" राधिका ने आशंका भरी नजरों से पूछा।

राकेश ने उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया और उसे फिर अपनी बाहों में कसते हुए बोला-- "मेरी बीबी जी, मुझे नौकरी से निकालना उनके बूते का नहीं है। मैंने जो किया है वह सरकारी नियमों के अनुसार ही किया है। हाँ वे मुझे परेशान और व्यापारियों को संतुष्ट करने के लिए मुझे सस्पेंड कर जाँच करवा सकते हैं। जाँच में यह साफ हो जायेगा कि जो नमूने मैंने जमा किये थे उनमें मिलावट थी और मैं बाइज्जत दुबारा ऑफिस ज्वाइन कर लूंगा। मुझे पूरा भरोसा है। मैंने सबकुछ बहुत सोच समझकर किया है। यह सब मेरी प्लानिंग का हिस्सा है, कुछ समझी?"

राधिका को कुछ समझ नहीं आया। उसने फिर पूछा-"तो ये सब करके आप को क्या मिलेगा ?"

राकेश ने राधिका के आठों को जोर से काटा और बोला--"जब तक सस्पेंड रहूँगा तब तक ऑफिस नहीं जाना होगा। आधी से ज्यादा सैलरी भी मिलती रहेगी। पुनः बहाली में पाँच से छ महीने लग ही जायेंगे। मैं कोई वकील कर लूंगा और कोशिश करूँगा की बहाली की प्रक्रिया जितनी लंबी हो सके उतना अच्छा। इस बीच मैं यू.पी., पी.सी.एस. और आई. ए. एस. का अपना लास्ट अटेम्ट भी दे ही लूंगा। बाक़ी किस्मत जाने। कुल मिलाकर यह समझो कि सीधे-सीधे छुट्टी माँग रहा था। वो भी बिना वेतन के तो इन लोगों ने अपनी धौंस में मना कर दिया। अब छुट्टी भी देंगे और आधे से ज्यादा वेतन भी। और यह सब कुछ होगा सरकारी नियमानुसार।"

इतना कहकर राकेश राधिका को बेतहाशा चूमने लगा। एक-दूसरे की बाहों में वे देर रात कब सो गये पता ही न चला ।

अगले दिन सुबह रोज की तरह राधिका उठी और चाय बनाकर लायी। राकेश को आज सुस्ती छायी थी, उसे ऑफिस की जल्दी नहीं थी। राधिका के बहुत कहने पर वह बिस्तर छोड़ डायनिंग रूम में आया और चाय के साथ अख़बार की सुर्खियों में कुछ खोजने लगा। अचानक उसकी नज़र एक ख़बर पर रुक गई। खबर थी - मावा के थोक व्यापारी के यहाँ खाद्य विभाग का छापा।

राकेश ने पूरी खबर ध्यान से पढ़ी और एक कुटिल मुस्कान उसके चेहरे पर छा गई। राधिका ने फिर टोका--"अरे आज ऑफिस नहीं जाना क्या? लाट साहब की तरह बैठे अख़बार पढ़ रहे हो। आख़िर जानबूझकर देर क्यों कर रहे हो? नहा लो, मैं नाश्ता तैयार कर देती हूँ।"

इतना कहकर राधिका किचन में चली गई । राकेश नहाने जाने ही वाला था कि दरवाज़े की घंटी बजी। राकेश ने दरवाज़ा खोला तो सामने ऑफिस का चपरासी नर्मदा खड़ा था। राकेश ने नर्मदा को देखते ही कहा--"अरे नर्मदा, इतनी सुबह? क्या बात है?"
नर्मदा ने अभिवादन के बाद कहा--"साहब कल आप के ऑफिस से आने के बाद भी खूब मिटिंग हुआ रात दस बजे तक। फिर ई चिट्ठी हमें दिया रस्तोगी जी ने और बोला कि आप को तुरंत पहुंचा दें। अब इतनी रात क्या आता साहेब इसलिये अभी आ गया।"

यह कहते हुए नर्मदा ने सरकारी पत्र राकेश को पकड़ा दिया और किसी कागज़ पर उसके हस्ताक्षर लेकर वहाँ से चला गया।

राकेश लिफ़ाफ़ा लेकर घर के अंदर आता है और दरवाज़ा बंद करके लिफ़ाफ़ा खोलकर पढ़ने लगता है। पत्र पढ़ते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान छाने लगी। इतने में राधिका किचन से आयी और बोली--"अरे, आप अभी यहीं हैं। हद है, आज तो ऑफिस देर से ही पहँचोगे और ये क्या है आप के हाथ में? कौन आया था इतनी सुबह?"

राकेश मुस्कुराते हुए राधिका के पास आया और उसे अपनी गोद में उठाकर बोला--"बीबी जी, प्लान कामयाब हुआ। ऑफिस से चपरासी नर्मदा आया था। वही यह पत्र देकर गया। यह मेरा सस्पेंशन लेटर है। आज से ऑफिस जाने की ज़रूरत नहीं। सिर्फ पढ़ाई और बीबी को प्यार। बस, दो ही काम हैं मेरे लिए।"
राधिका ने राकेश से खुद को नीचे उतारने को कहा। फिर वह लेटर लेकर पढ़ने लगी और बोली--"हे भगवान, आप इस दुनिया के पहले आदमी होंगें जो अपने सस्पेंड होने पर इतना खुश हो रहा है। बाहर हमारी कितनी बदनामी होगी, यह तो सोचिये।"

राकेश सोफे पर बैठते हुए बोला-- "अरे यार, कोई बदनामी-वदनामी नहीं होगी। कल से सारे अख़बार लिखेंगे कि ईमानदार अफ़सर को मिली अपनी ईमानदारी की सज़ा। बेईमान व्यापारी पर छापा मारने के कारण किये गए सस्पेंड और ऐसा ही बहुत कुछ। राधिका, यह दुनिया अजीब है। यहाँ ईमानदारी से कुछ नहीं मिलता लेकिन ईमानदारी का ढोल पीटने पर सब मिल जाता है। मैंने भी ईमानदारी से छुट्टी माँगी तो नहीं मिली और जब ढोल पीट दिया तो छुट्टी भी मिली और लोगों की सहानुभूति भी। घर बैठे मुफ़्त की आधी तनख्वाह ऊपर से।"
राधिका राकेश के पास आयी और बोली--"मैं अब सब समझ गई। हेमंत भईया तुम्हें चाणक्य ऐसे ही नहीं कहते हैं। अब जाओ नहा लो और नाश्ता कर के पढ़ाई में जुट जाओ। जिसके लिये यह सब किया अब उसपर ध्यान दो।"

आज्ञाकारी पति की तरह राकेश ने भी उठते हुए कहा--"ठीक कहती हो। मैं नहाने जा रहा हूँ, तुम हेमंत भाई साहब से बात करके कह देना कि हमें एक अच्छे वकील की ज़रूरत है, सो हो सके तो वे दो-चार दिन में कानपुर आ जायें।" इतना कहकर राकेश नहाने चला गया और राधिका रसोई घर में।

राकेश का सस्पेंशन लेटर वहीं डाइनिंग टेबल पर एक खाली गिलास के नीचे फड़फड़ाता रहा। मानो वह कागज़ ही अपने अस्तित्व की गवाही देना चाहता हो, पर उसे सुनना कोई भी नहीं चाहता। षड्यंत्रों की पूरी व्यवस्था में उस कागज़ की स्थिति बड़ी अजीब सी थी, ठीक सरकारी नियमों की तरह।

डॉ. मनीष कुमार सी. मिश्रा, हिंदी विभाग के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण, पश्चिम, महाराष्ट्र, भारत
ई-मेल: manishmuntazir@gmail.com
मोबाइल: 8090100900, 8080923132

 

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