अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

जहाँ पेड़ पर... (काव्य)

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Author: बशीर बद्र

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ से निशाने लगे

हुई शाम, यादों के इक गाँव से
परिन्दे उदासी के आने लगे

घड़ी-दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते-आते ज़माने लगे

कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुली, कारख़ाने लगे

वहीं ज़र्द पत्तों का क़ालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

पढ़ाई-लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे

--बशीर बद्र

 

 

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