अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

जल को तरसे हैं ...  (काव्य)

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Author: जया गोस्वामी

जल को तरसे हैं यहाँ खून पसीनो वाले
आसमा छूने लगे लोग ज़मीनो वाले

जो उठाते थे कभी खान से पत्थर सर पर
बन गये आज वो नायाब नगनो वाले

एक अलग दौर तमाशों में चला आया है
साँप की फूँक पे अब नाचते बीनो वाले

न थी जमीन, तो हाथों में उगाई फमलें
ले गए हाथ का बाजार मशीनो वाले

तेज़ रफ्तार कहाँ जा के रुकेगी बोलो
पल में निपटते हैं सभी काम महीनो वाले

सबसे आगे थे जो इन्साफ दिलाने के लिये
शीशे में ढल गये वो फौलाद के सीनो वाले

पार उनरने के लिए डूब रहे हैं ये गरीब
अब तो कुछ इनकी मदद कर, ओ सफीनो वाले

- जया गोस्वामी
[अभी कुछ दिन लगेंगे]

 

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