अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

तुमने मुझको देखा... (काव्य)

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Author: श्री गिरिधर गोपाल

तुमने मुझको देखा मेरा भाग खिल गया ।
मेघ छ्टे सूरज निकला हिल उठीं दिशाएं,
दूर हुईं पथ से बाधा मनसे चिंताएं,
तुमने अंक लगाया मेरा शाप धुल गया ।

केंचुल छूटी आज नया मैं रूप रहा धर
ज्योति हृदय के भीतर ज्योति हृदय के बाहर,
तुम मुस्काए सपनों को आकार मिल गया ।

धरती के नूपुर नभ की बांसुरिया बाजे,
मेरे आगे खुलते से जाते दरवाजे,
तुम कुछ बोले मुझको जीवन सार मिल गया ।


श्री गिरिधर गोपाल
[ राष्ट्र भारती, नवंबर 1953]

 

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