परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।

डिजिटल संसार में हिन्दी के विविध आयाम (विविध)

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Author: अरविंद कुमार

आज वैश्विक हिन्दी का मतलब है सूचना प्रौद्योगिकी के युग में हिन्दी और सूचना जगत में समाई हिन्दी। एक ऐसा आभासी संसार जो ठोस है और ठोस है भी नहीँ। पल पल परिवर्तित, विकसित जानकारी से भरा जगत जो हर उस आदमी के सामने फैला है जिस के पास कंप्यूटर पर इंटरनैट कनक्शन है या जिस के हाथ में स्मार्ट टेलिफ़ोन है। यह जगत केवल हिन्दी में ही नहीँ है, इंग्लिश में है, जर्मन में है, फ़्रैंच में है, उर्दू में है, बंगला में है, गुजराती में है। मैँ अपने आप को हिन्दी तक सीमित रखूँगा। यह जो हिन्दी है अकेले हमारे अपने देश की नहीँ है, पूरे संसार की है।

आज अंतर्जाल (इंटरनैट) पर क्या नहीं है। इस अंतर्जाल पर प्रवेश के कई मार्ग हैं। ‘मोज़िला' का ‘फ़ायरफ़ौक्स' है तो ‘गूगल' का ‘क्रोम' (chrome) भी है। अंतर्जाल पर पहुँच कर आप गूगल के ज़रिए कुछ भी खोज सकते हैं। गूगल इस्तेमाल न करें तो सीधे शीर्ष पंक्ति पर वांछित सामग्री टाइप करें - हिन्दी में या इंग्लिश में - पूरी जानकारी आप को मिलती है। मान लीजिए आप को ‘आम' फल के बारे में मालूम करना है या ‘रोटी' के बारे में। ऊपर की ख़ाली पंक्ति में ये शब्द लिख कर क्लिक कीजिए, तरह तरह के आम, आम कहाँ होता है - सब कुछ। संपूर्ण विश्व की मुक्त ऐनसाइक्लोपीडिया ‘विकिपीडिया' भी हाज़िर होगी ‘आम' पर संपूर्ण जानकारी के साथ। यही ‘रोटी' टाइप करके भी होगा। यहाँ तक कि ‘गुड़ की रोटी बनाने की विधि भी मिल जाएगी।

अगर ‘विकिपीडिया' है, तो हमारा अपना पूरी तरह भारतीय ‘भारत कोष' भी है। अपना सब कुछ दाँव पर लगा कर श्री आदित्य चौधरी इसकी रचना करवा रहे हैं, जबकि विकिपीडिया अनेक संस्थाओं से प्राप्त अनुदानों से चलता है। (संदर्भवश हमारे देश में यही कमी है। हम में से कोई कुछ नया, कुछ अत्यावश्यक, करने को कमर कस लेता है तो उसे कहीं से कोई सहायता नहीँ मिलती। यह मैं अपने निजी अनुभव से भी कह सकता हूं। ‘समांतर कोश' पर काम करने से पहले मैं ने कई जगह से सहायता माँगी, कुछ नहीं मिला तो अपना सब कुछ दाँव पर लगा कर सपरिवार जुट गया था।)

आज श्री ललित कुमार के नेतृत्व में ‘भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए' तैयार किया गया अभूतपूर्व ‘कविता कोश' है, जिस में हिन्दी-उर्दू सहित भोजपुरी, राजस्थानी, अंगिका, अवधी, नेपाली, हरियाणवी के अतिरिक्त अन्य भाषाएँ समाई जा रही हैं और काव्य का विशाल रंगमंच बनता जा रहा है। इसी तरह ‘हिन्दी गद्य कोश' भी निरंतर बढ़ता जा रहा है। कल्पना कीजिए संसार में कोई भी, कहीँ भी और कभी भी हिन्दी साहित्य का रसास्वादन कर सकता है, किसी लेख में कोट (quote) भी कर सकता है।

किसी को शब्दकोश चाहिए तो कई हिन्दी-इंलिश-हिन्दी कोश हैं। द्विभाषी थिसारस चाहिए तो मेरा अरविंद लैक्सिकन मौजूद है। और तो और अमेरीकी सरकार की नई नीति के अंतर्गत दक्षिण एशिया की सभी भाषाओं के कोश अब उपलब्ध हैं - जैसे काशी नागरी प्रचारिणी सभा का बाबू श्यामसुंदर दास का ग्यारह खंडों वाला ‘हिन्दी शब्दसागर' सब के लिए खुला है। मैं नित्यप्रति इस का उपयोग करता हूँ। इसका एक विशेष लाभ बताना चाहता हूँ। आप को तरह तरह के खेलों की जानकारी चाहिए। सर्च बाक्स में ‘खेल' टाइप कीजिए। पूरे कोश में जिस जगह भी खेल शब्द आया है, वह आप देख सकते हैँ। कई ऐसे खेल आप को मिलेंगे जो अब भुलाए जा चुके हैं। उदाहरण के लिए मैं नीचे कुल 28 प्रविष्टियाँ दिखा रहा हूं:
1) अंटाघर (p. 16) ...वह कमरा जिसमें गोली का खेल खेला जाय। इस खेल को अंगरेजी में बिलियर्ड...
2) अंडा (p. 17) अंडे लड़ाना = जुवारियों का एक खेल जिसमें दो आदमी अंडे के सिरे लड़ाते...
3) अंधा (p. 37) ...। (२) लड़कों का एक खेल जो चार लकड़ियों से खेला जात है...
4) अंधिका (p. 38) ...। जूआ का खेल। ३. एक विशेष प्रकार का खेल या क्रीड़ा...
5) अकल (p. 64) ...। अखंड। उ०- अकल कला को खेल बनिया, अनंत रूप दिखाइया।- गुलाल०, पृ०...
6) अक्खरिका पु (p. 73) एक प्रकार की क्रीड़ा या खेल। उ०-'बोद्धों के शील' ग्रंथ में...
7) अक्ष (p. 76) ...पासा।२. पासों का खेल। चौसर।३. छकड़ा...
8) अक्षक्रीड़ा (p. 76) १. पासे का खेल। चौसर। चौपड़।२...
9) अक्षरच्युतक (p. 78) ...अर्थ देनेवाला अक्षरों का एक प्रकार का खेल [को०]।
10) अक्षवती (p. 79) द्दुत क्रीड़ा। पासों का खेल [को०]।
11) अक्षसुक्त (p. 79) ...है। शेष ऋचाऔ में जुए का खेल और जुआड़ियों की स्तिति का अंकन किया...
12) अक्षहृदय (p. 79) १. जुए के खेल की दक्षता। २...
13) अखेलत पु (p. 85) वि० [सं० अ+खेल = खेलना = बिना खेलते...
14) अजगैबी पु (p. 120) ...। अजगैबी तमाशा=आश्चर्य करनेवाला खेल। अजगैबी मार=दे०...
15) अटकन बटकन (p. 129) छोटे लड़कों का एक खेल। विशेष...
16) अड़ी (p. 136) ४. पास या चोपड़ के खेल में एक ही घर में दो गोटियों...
17) अनय (p. 190) ...को०)। जुए का एक प्रकार का खेल (को०)।
18) अभिनय (p. 273) ...। स्वाँग। नकल। नाटक का खेल। विशेष...
19) अरसपरस (p. 311) लड़कों का एक खेल। आँखमिचौनी। छुआछुई। अँखमुनाल।...
20) अलेल पु (p. 333) ...बहुत। अधिक। ज्यादा। उ०-घनआनंद खेल अलेल दसै बिलसै, सुलसै लट भुमि झुलि...
21) अवलीला (p. 347) १. क्रीड़ा। खेल। २. अनादर। अवहे-...
22) आँख (p. 402) ...बचे का चाँटा = लड़कों का एक खेल जिसमें यह बाजी लगती है कि जिसे...
23) आँखमिचौली (p. 403) ...का एक खेल। लडकों द्वारा आँख मूँदकर छिपने और खोजने का एक खेल।...
24) आँखमीचली पु † (p. 403) ...खेलत मिलि ग्वाल मंडली आँकमीचली खेल। चढ़ीचढ़ा को खेल सखन में खेलत हैं रस...
25) आँटी (p. 405) ...बालके। गोविंद स्वामी संग आँटि दंड खेल हालके।-रघुराज० (शब्द०)। ३
26) आँडेबाँडे खाना (p. 405) विशेष-फुल बुझौगल के खेल में जब लडकों के दल बँध जाते...
27) आउट (p. 408) [अं०] खेल में हारा हुआ। बहिर्भूत।
28) आकर्ष (p. 409) २. पासे का खेल।३. बिसात जिसपर पासा...

अगर आप केवल ‘ऐंट्री वर्ड' खोजते तो आपको मिलता ‘खेल' का दूसरा अर्थ भी - ‘वह छोटा कुँड चौपाए पानी पीते हैं।' (उल्लेखनीय है कि अमेरीका में प्रूफ़ रीडिंग बहुत महंगी है, इसलिए कोश में कुछ अशुद्धियां भी हैं, जैसे ‘कुंड' की जगह ‘कुँड' और ‘कुँड' के बाद ‘जिसमें' टाइप होने से रह जाना। ऊपर की कुछ प्रविष्टियाँ भी ऐसी ग़लतियों से भरी हैं - अक्षसुक्त, जुआड़ियों की स्तिति आदि

ब्लाग और सोशल माध्यम

आज अधिकांश हिन्दी पत्रपत्रिकाओं के मुद्रित संस्करण तो होते ही हैँ, उनके डिजिटल संस्करण अंतर्जाल पर हैं। आप चाहें तो ये सब आप ख़रीदे बिना भी पढ़ सकते हैं।

आज आप और मैं ही नहीं सब लोग अपनी बात कहने के लिए, अपनी रचनाएँ पढ़वाने के लिए किसी संपादक की कृपा के मोहताज नहीँ हैँ। बेचारे संपादक भी क्या करें, अपनी सीमित जगह में कितनों का लिखा कितना ही अच्छा हो कितना छापेँ। लेकिन अब हर कोई अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र है। विषय कुछ भी हो, भाषा कैसी भी हो, वे अपनी कहनी कह रहे हैं। कविता हो, कहानी हो, निबंध हो, राजनीति हो, धर्म हो, फ़ोटोग्राफ़ी हो, चित्रकला हो, संगीत हो - कोई भी विषय ब्लागों से अछूता नहीं है। आज हिन्दी ब्लागकार बीस लाख हैं, तो जल्दी ही तीस लाख हो जाएंगे। गूगल वालों का कहना है कि इंटरनैट पर हिन्दी सामग्री हर साल लगभग 95% बढ़ रही है।

ब्लागों से हट कर हमारे पास कई सोशल माध्यम हैं - फ़ेसबुक है, व्हाट्सैप है, कोरा (Quora) है। कहा जाता है कि फ़ेसबुक और व्हाट्सैप पर लिखी जानकारी दंगे भी करा देती है, चुनावों को प्रभावित कर सकती है। मैं स्वयं फ़ेसबुक पर सक्रिय हूँ। लगता है कि फ़ेसबुकिये दो धड़ों में बँट गए हैं जो मोटे तौर पर भक्त और वामी-खाँग्रेसी कहलाते है। कोई निरपेक्ष टिप्पणी करो तो दोनों में एक धड़ा नाराज़ हो जाता है। अतः अब मैं किसी भी प्रकार की धार्मिक, सामाजिक राजनीतिक टिप्पणी नहीं करता। अपने काम की बात करता हूँ, कलाओं की बात करता हूँ।


परदेश में भारतवासी - ईपत्रिकाएं और साहित्य

आज सारी दुनिया में हिन्दी बोलने वाले हैं तो यह उनके भारत से विदेशगमन के कारण हैं। यह विदेशगमन कई लहरों में हुआ है। सब से पहली थी गिरमिटिया लहर। आज की पीढ़ी को ‘गिरमिटिया' शब्द समझाने के लिए कुछ जानकारी ज़रूरी है। सन 1838 में यूरोप में ग़ुलाम प्रथा समाप्त कर दी गई थी। तब कैरीबियन देशों में अफ़्रीकी ग़ुलामों की जगह काम करने के लिए भारत से जो लाखों मज़दूर निर्यात किए गए थे वे गिरमिटिया कहे जाते हैं। हर साल 10 से 15 हज़ार मज़दूर गिरमिटिया बना कर फिजी, ब्रिटिश गुयाना, डच गुयाना, ट्रिनीडाड एंड टोबेगा, नेटाल (दक्षिण अफ्रीका) आदि को ले जाये जाते थे। जब मैं 1976 में विश्व हिन्दी सम्मेलन में भाग लेने मारीशस गया, तो समझ में आया था गिरमिटिया का असली मतलब और जाना था कि किस तरह ‘रामचरितमानस' ने उन्हें अपनी धरती से जोड़े रखा। इन सभी जगहों पर उन की प्राचीन बोली प्रमुख भाषा है, पर अब वहाँ के लोग नई खड़ी बोली हिन्दी को भी स्वीकार कर रहे हैं। पहले उनके अधिकतर लोकगीत उन्हीं बोलियों में स्थानीय भाषाओं का पुट लिए होते थे। अब आधुनिक हिन्दी भी लोकप्रिय हो रही है। उस में साहित्य भी लिखा जाता है। मारीशस के स्वर्गीय अभिमन्यु अनत आधुनिक हिन्दी साहित्य की कड़ी बन गए हैं। मुझे याद है जब पचासादिक दशक में मैं ‘सरिता' में था तो वे हमारे नियमित लेखकों में थे।

आज संयुक्त राज्य अमेरीका तथा कैनडा में ही नहीँ दुनिया में हर जगह भारतीयों का बसना गिरमिटिया मज़दूरों से अलग तरह का है। इन्हें हम एनआरआई कहते हैं जो पिछले साठ सत्तर साल से उत्तरी अमेरीका (संयुक्त राज्य अमेरीका और कैनडा) गए और वहीं बस गए। ये लोग उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। कई उच्च शिक्षा के लिए वहाँ गए और वहीं के हो लिये। उन में से कई के पास उच्च सांस्कृतिक मनोवृत्ति थी। अपने गंतव्य देश में वे अपनी भूमि से जुड़े रहने के लिए साहित्य रचना कर रहे हैं, ईपत्रिकाएँ निकाल रहे हैं। मैं केवल दो का ज़िक्र करूंगा।

ईपत्रिका 1 - ‘भारत दर्शन' (न्यू ज़ीलैंड): जुलाई-अगस्त 2018
‘भारत दर्शन' को संसार की पहली हिन्दी ईपत्रिका होने का श्रेय प्राप्त है। इसके संस्थापक रोहित कुमार हैप्पी मूलतः हरियाणा के हैं। जुलाई-अगस्त 2018 अंक के आमुख से आप इस का आकलन कर सकते हैं।

इस अंक की कथा-कहानियों में गुलेरी की 'हीरे का हीरा', प्रेमचंद की 'महातीर्थ', सुब्रह्मण्य भारती की 'अर्जुन का संदेह', लीलावती मुंशी की 'जीवन संध्या' व सुशांत सुप्रिय की 'भूकंप' प्रकाशित की गई हैं। इसके अतिरिक्त लघु-कथाएं, लोक-कथाएं, संस्मरण प्रकाशित किए गए हैं।

लोक-कथाओं में भारतीय लोक-कथाओं के अतिरिक्त इस बार न्यूज़ीलैंड व ऑस्ट्रेलिया की लोक-कथाएं प्रकाशित की गई हैं।

इस बार साक्षात्कार के अंतर्गत हम आपकी मुलाकात 'मदारीपुर जंक्शन' के उपन्यासकार 'बालेन्दु द्विवेदी' व न्यूज़ीलैंड लोक-कथाओं की लेखिका 'प्रीता व्यास' से करवा रहे हैं।
काव्य में गीत, ग़ज़ल, कविता, दोहे, भजन व हास्य कविताएं सम्मिलित की गई हैं।

बाल-साहित्य के अंतर्गत शेखचिल्ली की कहानी, 'ख्याली जलबी', अरविंद की सीख भरी बाल-कथा, 'बेईमान' और सुभद्राकुमारी चौहान की 'हींगवाला' बच्चों को रोचक लगेंगी। बालस्वरूप राही व निरंकार देव सेवक के बाल-गीत पढ़कर बच्चे आनंदित होंगे।

आलेखों में इलाश्री का आलेख 'माँ का संवाद - लोरी', गोवर्धन यादव का 'यात्रा अमरनाथ की' व '1857 के आन्दोलन में उत्तर प्रदेश का योगदान' पठनीय है।

इस अंक में न्यूज़ीलैंड की एक माओरी लोककथा ‘ताही और व्हेल' की लेखिका हैं प्रीता व्यास।

कहानी इस प्रकार है--
बहुत पुरानी बात है। दादी की दादी की दादी से भी बहुत-बहुत पहले की। सफेद बादलों के देश में एक बार खूब बारिश हुई, खूब। इतनी कि सब जल-थल हो गया। एक गांव (Kainga) था जिसमें बसने वालों ने कहना शुरू कर दिया कि यह बारिश ‘ते ताही' ही लेकर आई है। ते ताही ने अपने जादू से सारी धरती को डुबो देने जितनी बारिश करवाई है।

ते ताही गांव में रहने वाला एक युवक था जिसके बारे में गांव के लोग कहते थे कि वह जादू जानता है। भारी बारिश से परेशान गांव वालों ने तय किया कि ते ताही को गांव से दूर कहीं छोड़ दिया जाए ताकि बारिश रुक जाए और बगीचों में फिर हरियाली छा उठे, खेती संभव हो सके।

गांव के कुछ लोग एक नाव पर ते ताही को बिठाकर दूर समंदर में निकल पड़े। खेते-खेते वे एक अन्य निर्जन द्वीप पर जा पहुंचे। उन्होंने ते ताही को वहां उतार दिया और वापस लौट पड़े।

ते ताही ने जब जाना कि उसे अकेला छोड़ दिया गया है तो उसने सीटी बजाकर व्हेलों को तट के पास बुलाया और उनकी पीठ पर सवार होकर अपने गांव लौट आया। व्हेल तेज़ तैरती है सो वह उस नौका से पहले पहुंच गया जो उसे छोड़ने गई थी। जब नाव वापस पहुंची तो उस पर सवार लोगों ने देखा कि ते ताही तो वहां मौजूद है। उन्हें लगा कि उन्होंने ते ताही के साथ गलत किया। सब ने तय किया कि ते ताही को गांव से नहीं निकाला जाएगा, वह साथ ही रहेगा।

इसके बाद से ते ताही पूरी उम्र अपने गांव में ही रहा। जब वह बूढ़ा हो गया तो उसने एक दिन अपने आप को एक तानिफा (Taniwha - दैत्य ) में बदल लिया और अपने मित्र व्हेल मछलियों के पास रहने चला गया।


ईपत्रिका 2 - ‘सेतु' (अमेरीका): जुलाई 2018
यह अंतरराष्ट्रीय द्वैभाषिक पत्रिका पिट्सबर्ग (अमेरीका) के सेतुनगर से प्रकाशित है। यह अमेरीका और भारत ही नहीँ हिन्दी और इंग्लिश के बीच सेतु बनना चाहती है। संपादक हैं श्री अनुराग शर्मा। इसके लेखकों संसार भर के देशी व विदेशी लेखक हैं। तीन चार का परिचय दे रहा हूँ।

नवयुवा अब्दुल इलियासी सनसनी नाइज़ीरिया के प्रदेश तराबा के निवासी हैं और वहां के न्यूज़शटल समाचार पत्र में स्तंभकार रहे हैं, आजकल येरवा ऐक्सप्रैस न्यूज़ तथा लीडरशिप न्यूज़पेपर के लिए लिखते हैं। इलियासी की रचनाएँ सेतु के इंग्लिश संस्करण में छपती हैं।

आभा वत्स कवि, लेखक और चिट्ठाकार हैं। लिखित शब्द की शक्ति की पैरोकार हैं।

सेतु के कला संपादक अनुभव सोम ने काशी विश्वविद्यालय से कला में उच्च शिक्षा प्राप्त की है।

हिन्दी तथा इंग्लिश में कविताएं लिखने वाले ब्रजेश कुमार गुप्ता को सन 2018 का फ़ेजल किंग अरबिंद चौधरी अवार्ड से अलंकृत किया गया है। वह मानवता के ऐमबैस्डर है, सामयिक कलाओं और सि के प्रचार प्रसार की संस्था के सक्रिय प्रबंधक हैं।

उन्मादी लेखक दिवाकर पौखरियाल के ग्यारह कविता और एक कहानी संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। 87 कविता संकलनों में उनकी कविताएं मिलती हैं। वह गिटारवादक हैं, उनके गीत यूट्यूब पर उपलब्ध हैं।
हैदराबाद के चार्टर्ड अकाउनटैंट गिरिधर ममीडी ने महाभारत से संबंथित 25 स्थलों की यात्रा कर चुके हैं, विलुप्त सरस्वती नदी का पूरा मार्ग भी खंगाला है। कई हड़प्पन संस्कृति के क्षेत्रों को परखा है।

यह लेख लिखने के लिए मैं ने इस का जुलाई 2018 अंक पूरा पढ़ा और प्रभावित हुए बिना न रह सका। यह किसी भी भारतीय साहित्यिक पत्रिका से टक्कर ले सकता है। प्रस्तुत है इस अंक में अमेरीका में रहने वाली निधि अग्रवाल की कहानी ‘फैण्टम लिम्ब' कहानी से दो अंश। इस कहानी को हम विदेशों में हिन्दी साहित्यकारों की विशेषता का अनुमान लगा सकते हैं। जहाँ रहते हैं वहीं का वर्णन और भारत में अपनों की और अपनी धरती की याद।

"वाशिंगटन के सिनर्जी अस्पताल में फिजिशियन के पद पर तीन साल का अनुभव। अब वहाँ से ऐशबर्न के किसी अस्पताल में काम करने का मतलब है नए सिरे से अपनी पहचान बनाना। फिर, इस घर से पिछले दो साल में मन इस कदर जुड़ गया है कि उसे छोड़ने का अर्थ अपनी सांसों से जुदा होना-सा होता है। समिधा बेमन से उठकर तैयार हुई। मार्च आने वाला था लेकिन फरवरी की बर्फबारी अभी तक थमी नहीं थी। हवाओं की ठंडक मन के ताप को बुझाने को प्रयासरत प्रतीत हो रही थी। ऐसे में अंबर के स्नेहिल स्पर्श कितने सुखकर प्रतीत होते थे, समिधा ने कार शुरू करते हुए सोचा। ....
(कुछ पैराग्राफ बाद)
समिधा ने यूटयूब सर्च कर गाना लगाया,
‘चला फुलारी फूलों को
‘सौदा-सौदा फूल बिरौला'
सुनते हुए समिधा को लगा जैसे वह गढ़वाल की ही वादियों में घूम रही हो।
‘भौंरों का जूठा फूल ना तोड्यां
‘म्वारर्यूं का जूठा फूल ना लायाँ
‘ना उनु धरम्यालु आगास
‘ना उनि मयालू यखै धरती'
उदासी और अकेलापन और गहराने लगा। गाने में खोई वह सोचने लगी। आकाश यहाँ उतना ही साफ है लेकिन लोग अनजान। आज उसे सच ही यह देश यहाँ की धारती यहाँ का आकाश सभी बेगाना-सा लग रहा था। उसने गाड़ी साइड में लगाई और आज महीनों बाद माँ को फोन लगाया। वैसे सदा माँ ही परेशान होकर उसे किसी से कह फोन मिलवाया करती है।

परदेशी साहित्य
परदेश में रचित हिन्दी साहित्य की बात करें तो दिल्ली विश्वविद्यालय से इंग्लिश में एम.ए. तेजेन्द्र शर्मा आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर सबसे सक्रिय हिन्दी लेखक हैं जो उधर के सभी रचनाकारों को जोड़े रखने में पूरी तरह जुटे हैं। ब्रिटेन की महारानी ने उन्हें एम.बी.ई. से अलंकृत किया है। वह हैं। उन्हें भारत के राष्ट्रपति ने ‘पद्मभूषण' और ‘सत्यानंद मोटुरी सम्मान' से अलंकृत किया तो और हाल ही में टाइम्स ऑफ़ इण्डिया समाचार समूह ने उन्हें ‘एन.आर.आई. ऑफ़ दि ईयर' से सम्मानित किया। कथाकार तेजेन्द्र शर्मा पहले एअर इंडिया में फ़्लाइट परसर के पद पर कार्यरत थे, आजकल ब्रिटिश रेल की सेवा में हैं। दो दशकों से लंदन में रहने वाले रहे तेजेन्द्र हिन्दी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय ‘इंदु शर्मा कथा सम्मान' का आयोजन भी करते हैं। उन्हें हिन्दी को ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स एवं हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स एवं बकिंघम पैलेस तक ले जाने का श्रेय हासिल है।

तेजेन्द्र जी के अनुसार यूरोप में हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान करने वाले कुछ लेखक हैं (उनकी लंबी सूची में से मैं कुल चार पाँच नाम दे रहा हूँ):
ब्रिटेन में रहती हैं प्रसिद्ध लेखिका उषा राजे सक्सेनाः कविता संग्रह ‘विश्वास की रजत सीपियाँ,' ‘इंद्रधनुष की तलाश में,' ‘क्या फिर वही होगा', कहानी संग्रह : ‘प्रवास में', ‘वॉकिंग पार्टनर', ‘वह रात और अन्य कहानियाँ,' अन्य : ‘ब्रिटेन में हिन्दी'

जय वर्मा कविता संग्रह ‘सहयात्री हैं हम', कहानी संग्रह ‘सात कदम', (इनकी कई मार्मिक कहानियाँ मैंने पढ़ी हैं)

ज़किया ज़ुबैरी की कविताएं भारत की पत्रिकाओं में प्रकाशित और राजकमल से कहानी संग्रह ‘सांकल' प्रकाशित हुई है।

कई साल से अमरीका में रहती हैं दिल्ली से ही प्रसिद्ध उषा प्रियंवदा. उपन्यासः ‘पचपन खम्बे लाल दीवारें,' ‘रुकोगी नहीं राधिका,' ‘शेषयात्रा,' ‘अन्तरवंशी,' ‘भया कबीर उदास'। कहानी संग्रहः ‘ज़िन्दगी और गुलाब के फूल,' ‘एक कोई दूसरा,' ‘कितना बड़ा झूठ'।

सुदर्शन प्रियदर्शिनी के उपन्यास हैं ‘रेत के घर,' ‘जलाक,' ‘सूरज नहीं उगेगा,' ‘ना भेज्यो बिदेस,' कहानी संग्रहः ‘उत्तरायण'।

सुधा ओम ढींगरा: उपन्यास ‘नक्काशीदार केबिनेट', कहानी संग्रह: ‘कमरा न. 103', ‘कौन सी ज़मीन अपनी,' ‘वसूली,' ‘सरकती परछाइयाँ,' ‘धूप से रूठी चांदनी,' ‘तलाश पहचान की,' कविता संग्रह: ‘सफ़र यादों का'।

और स्वयं तेजेन्द्र शर्माः ‘काला सागर' (1990), ‘ढिबरी टाईट' (1994), ‘देह की कीमत' (1999), ‘यह क्या हो गया!' (2003), ‘बेघर आंखें' (2007), ‘सीधी रेखा की परतें', ‘क़ब्र का मुनाफ़ा,' ‘दीवार में रास्ता' आदि कहानी संग्रह। ‘ये घर तुम्हारा है'कविता एवं ग़ज़ल संग्रह।

अरविंदकुमार (9811127360) ईमेल arvind@arvindlexicon.com
पता- द्वारा मीता लाल (9810016568) - ई-28 प्रथम तल, कालिंदी कालोनी, नई दिल्ली 110065

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