देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

लंच! प्रपंच!! (काव्य)

Author: मधुप पांडेय

आगंतुक ने चिढ़कर
बड़े बाबू से कहा -
"अजीब प्रपंच है!
मैं जब भी आता हूं,
क्लर्क कहता है--
श्रीमान, अभी ‘लंच' है।
समझ नहीं पाता हूं
मेरे आने का समय
गलत या सही है।
क्या आपके यहां
लंच का कोई
निश्चित समय नहीं है?"
उत्तर मिला--" श्रीमान,
जब भी कोई आगंतुक
‘लंच' का प्रस्ताव लाता है।
हमारे ऑफिस में
तुरंत उसी समय
‘लंच' का समय हो जाता है!"

-मधुप पांडेय
[मीठी मिर्चियाँ]

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश