परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
 

गिरगिट (कथा-कहानी)

Author: एन्तॉन चेखव

पुलिस का दारोगा ओचुमेलोव अपना नया ओवरकोट पहने, हाथ में एक बण्डल दबाए बाजार के चौक से गुज़र रहा है। लाल बालों वाला एक सिपाही हाथ में टोकरी लिये उसके पीछे-पीछे लपका हुआ चला आ रहा है। टोकरी ऊपर तक बेरों से भरी हुई थी जिसे उन्होंने तुरंत जब्त कर लिया। चारों ओर ख़ामोशी...चौक में एक भी आदमी नहीं...दुकानों व सरायों के भूखे जबड़ों की तरह खुले हुए दरवाज़े ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे हैं। यहाँ तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखायी नहीं देता है।

"अच्छा! तो तू काटेगा?   क्यों बे शैतान कहीं का!" ओचुमेलोव के कानों में सहसा यह आवाज़ पड़ी, "पकड़ लो, छोकरो! जाने न पाये! अब तो काटना क़ानूनी मना है! पकड़ लो! आ...आह!"

एक कुत्ते के पिपयाने की आवाज़ सुनायी दी। ओचुमेलोव ने उधर नज़र दौड़ायी जिधर से आवाज़ आयी थी।  उसने देखा कि व्यापारी पिचूगिन की लकड़ी की टाल में से एक कुत्ता तीन टाँगों पर भागता हुआ चला आ रहा है।  कलफदार छपी हुई कमीज़ पहने, बास्कट के बटन खोले एक आदमी उसका पीछा कर रहा है जिसका बदन आगे की ओर झुका हुआ है।वह कुत्ते के पीछे लपकता है और उसे पकड़ने की कोशिश में गिरते-गिरते भी कुत्ते की पिछली टाँग पकड़ लेता है। कुत्ते की कीं-कीं और वही चीख़ - "जाने न पाये!" दोबारा सुनायी देती है। ऊँघते हुए लोग गरदनें दुकनों से बाहर निकल कर देखने लगते हैं, और देखते-देखते एक भीड़ टाल के पास जमा हो जाती है मानो ज़मीन फाड़ कर निकल आयी हो।

"हुजूर! मालूम पड़ता है कि कुछ झगड़ा-फसाद है!" सिपाही बोला।

ओचुमेलोव बायीं ओर मुड़ता है और भीड़ की तरफ़ चल देता है। वह देखता है कि टाल के फाटक पर वही आदमी खड़ा है, जिसकी वास्कट के बटन नदारद हैं। वह अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाये भीड़ को अपनी लहूलुहान उँगली दिखा रहा है। उसके नशीले चेहरे पर साफ़ लिखा लगता है, "तुझे मैंने सस्ते में न छोड़ा, साले!" और उसकी उँगली भी जीत का झण्डा लगती है। ओचुमेलोव इस व्यक्ति को पहचान लेता है। वह सुनार ख्रूकिन है। भीड़ के बीचोंबीच अगली टाँगें पसारे, अपराधी - एक सफ़ेद ग्रेहाउँड पिल्ला, दुबका पड़ा, ऊपर से नीचे तक काँप रहा है। उसका मुँह नकीला है और पीठ पर पीला दाग है। उसकी आँसू भरी आँखों में मुसीबत और डर की छाप है।

"क्‍या हंगामा मचा रखा है यहाँ?" ओचुमेलोव कन्धों से भीड़ को चीरते हुए सवाल करता है, "तुम उँगली क्यों ऊपर उठाये हो? कौन चिल्ला रहा था?"

"हुजूर! मैं चुपचाप अपनी राह जा रहा था," ख्रूकिन अपने मुँह पर हाथ रख कर खाँसते हुए कहता है। मित्री मित्रिच से मुझे लकड़ी के बारे में कुछ काम था। एकाएक, मालूम नहीं क्यों, इस कमबख्त ने मेरी उँगली में काट लिया...हुजूर माफ़ करें, पर मैं कामकाजी आदमी ठहरा...और फिर हमारा काम भी बड़ा पेचीदा है। एक हफ्ते तक शायद मेरी यह उँगली काम के लायक न हो पायेगी। मुझे हरजाना दिलवा दीजिये। और, हुजूर, यह तो कानून में कहीं नहीं लिखा है कि ये मुए जानवर काटते रहें और हम चुपचाप बरदाश्त करते रहें...अगर हम सभी ऐसे ही काटने लगें, तब तो जीना दूभर हो जाये..."

"हुँह...अच्छा..." ओचुमेलोव गला साफ़ करके, त्योरियाँ चढ़ाते हुए कहता है, "ठीक है...अच्छा, यह कुत्ता है किसका? मैं इस बात को यहीं नहीं छोड़ुंगा! यों कुत्तों को छुट्टा छोड़ने का मजा चखा दूँगा! लोग कानून के मुताबिक नहीं चलते, उनके साथ अब सख्ती से पेश आना पड़ेगा! ऐसा जुरमाना ठोकूंगा कि दिमाग़ ठीक हो जायेगा बदमाश को! फ़ौरन समझ जायेगा कि कुत्तों और हर तरह के ढोर-डंगर को ऐसे छुट्टा छोड़ देने का क्या मतलब है! मैं ठीक कर दूँगा, उसे! येल्दीरिन! सिपाही को सम्बोधित कर दारोगा चिल्लाता है, पता लगाओ कि यह कुत्ता है किसका, और रिपोर्ट तैयार करो! कुत्ते को फ़ौरन मरवा दो! यह शायद पागल होगा...मैं पूछता हूँ यह कुत्ता है किसका?"

"यह शायद जनरल झिगालोव का हो!" भीड़ में से कोई कहता है। "जनरल झिगालोव का? हुँह...येल्दीरिन, जरा मेरा कोट तो उतारना...ओफ, बड़ी गर्मी है...मालूम पड़ता है कि बारिश होगी। अच्छा, एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि इसने तुम्हें काटा कैसे?" ओचुमेलोव ख्रूकिन की ओर मुड़ता है। "यह तुम्हारी उँगली तक पहुँचा कैसे? यह ठहरा जरा सा जानवर और तुम पूरे लहीम-शहीम आदमी। किसी कील-वील से उँगली छील ली होगी और सोचा होगा कि कुत्ते के सिर मढ़ कर हरजाना वसूल कर लो। मैं ख़ूब समझता हूँ! तुम्हारे जैसे बदमाशों की तो मैं नस-नस पहचानता हूँ!"

"इसने उसके मुँह पर जलती हुई सिगरेट लगा दी, हुजूर! बस, यूँ ही मज़ाक़ में। और यह कुत्ता बेवक़ूफ़ तो है नहीं, उसने काट लिया। ओछा आदमी है यह हुजूर!"

"अबे! काने! झूठ क्यों बोलता है? जब तूने देखा नहीं, तो झूठ उड़ाता क्यों है? और सरकार तो ख़ुद समझदार हैं। सरकार ख़ुद जानते हैं कि कौन झूठा है और कौन सच्चा। और अगर मैं झूठा हूँ, तो अदालत से फैसला करा लो। कानून में लिखा है...अब हम सब बराबर हैं, ख़ुद मेरा भाई पुलिस में है...बताये देता हूँ...हाँ..."

"बन्द करो यह बकवास!"

"नहीं, यह जनरल साहब का नहीं है," सिपाही गंभीरतापूर्वक कहता है "उनके पास ऐसा कोई कुत्ता है ही नहीं, उनके तो सभी कुत्ते शिकारी पोण्टर हैं।

"तुम्हें ठीक मालूम है?"

"जी, सरकार।"

"मैं भी जानता हूँ। जनरल साहब के सब कुत्ते अच्छी नस्ल के हैं, एक से एक कीमती कुत्ता है उनके पास। और यह! यह भी कोई कुत्तों जैसा कुत्ता है, देखो न! बिल्कुल मरियल खारिश्ती है। कौन रखेगा ऐसा कुत्ता? तुम लोगों का दिमाग़ तो खराब नहीं हुआ? अगर ऐसा कुत्ता मास्को या पीटर्सबर्ग में दिखायी दे, तो जानते हो क्या हो? कानून की परवाह किये बिना एक मिनट में उसकी छुट्टी कर दी जाये! ख्रूकिन! तुम्हें चोट लगी है और तुम इस मामले को यूँ ही मत टालो...इन लोगों को मजा चखाना चाहिए! ऐसे काम नहीं चलेगा।"

"लेकिन मुमकिन है, जनरल साहब का ही हो..." कुछ अपने आपसे सिपाही फिर कहता है, "इसके माथे पर तो लिखा नहीं है। जनरल साहब के अहाते में मैंने कल बिल्कुल ऐसा ही कुत्ता देखा था।"

"हाँ, हाँ, जनरल साहब का ही तो है!" भीड़ में से किसी की आवाज़ आती है।

"हुँह...येल्दीरिन, जरा मुझे कोट तो पहना दो...हवा चल पड़ी है, मुझे सरदी लग रही है...कुत्ते को जनरल साहब के यहाँ ले जाओ और वहाँ मालूम करो। कह देना कि इसे सड़क पर देख कर मैंने वापस भिजवाया है...और हाँ, देखो, यह भी कह देना कि इसे सड़क पर न निकलने दिया करें...मालूम नहीं कितना कीमती कुत्ता हो और अगर हर बदमाश इसके मुँह में सिगरेट घुसेड़ता रहा, तो कुत्ता तबाह हो जायेगा। कुत्ता बहुत नाजुक जानवर होता है...और तू हाथ नीचा कर, गधा कहीं का! अपनी गन्दी उँगली क्यों दिखा रहा है? सारा कुसूर तेरा ही है...

"यह जनरल साहब का बावर्ची आ रहा है, उससे पूछ लिया जाये। ए प्रोखोर! इधर तो आना भाई! इस कुत्ते को देखना, तुम्हारे यहाँ का तो नहीं है?"

"अमाँ वाह! हमारे यहाँ कभी भी ऐसे कुत्ते नहीं थे!"

"इसमें पूछने की क्या बात थी? बेकार वक्त खराब करना है," ओचुमेलोव कहता है, "आवारा कुत्ता है। यहाँ खड़े-खड़े इसके बारे में बात करना समय बरबाद करना है। कह दिया न आवारा है, तो बस आवारा ही है। मार डालो और काम ख़त्म!"

"हमारा तो नहीं है," प्रोखोर फिर आगे कहता है, "पर यह जनरल साहब के भाई साहब का कुत्ता है। उनको यह नस्ल पसन्द है..."

"क्‍या? जनरल साहब के भाई साहब आये हैं? व्लीदीमिर इवानिच?" अचम्भे से ओचुमेलोव बोल उठता है, उसका चेहरा आह्लाद से चमक उठता है। "जरा सोचो तो! मुझे मालूम भी नहीं! अभी ठहरेंगे क्या?"

"हाँ..."

"जरा सोचो, वह अपने भाई से मिलने आये हैं...और मुझे मालूम भी नहीं कि वह आये हैं। तो यह उनका कुत्ता है? बड़ी ख़ुशी की बात है। इसे ले जाओ...कुत्ता अच्छा...और कितना तेज़़ है...इसकी उँगली पर झपट पड़ा! हा-हा-हा...बस-बस, अब काँप मत। गुर्र-गुर्र...शैतान गुस्से में है...कितना बढ़िया पिल्ला है..."

प्रोखोर कुत्ते को बुलाता है और उसे अपने साथ ले कर टाल से चल देता है। भीड़ ख्रूकिन पर हसने लगती है।

"मैं तुझे ठीक कर दूँगा," ओचुमेलोव उसे धमकाता है और अपना ओवरकोट लपेटता हुआ बाजार के चौक के बीच अपने रास्ते चल देता है।

(1884)

- एन्तॉन चेखव
[‘गिरगिट' (A Chameleon) कहानी का अनुवाद। ]

एन्तॉन पेवलोविच चेखोव ( 1860 - 1904 ) ने मास्को विश्वविद्यालय से चिकित्सा शास्त्र में डिग्री प्राप्त की। आरंभ में चेखोव ने हास्य-लेख लेखन किया व शीघ्र ही वह संसार का एक अत्यंत सफल लघुकथा लेखक बन गया।

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