यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
 

कभी दो क़दम.. | ग़ज़ल (काव्य)

Author: गुलाब खंडेलवाल

कभी दो क़दम, कभी दस क़दम, कभी सौ क़दम भी निकल सके
मेरे साथ उठके चले तो वे, मेरे साथ-साथ न चल सके

तुझे देखे परदा उठाके जो किसी दूसरे की मजाल क्या!
ये तो आइने का कमाल है कि हज़ार रंग बदल सके

तेरे प्यार में है पहुँच गया, मेरा दिल अब ऐसे मुक़ाम पर
कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके

मेरी ज़िन्दगी है बुझी-बुझी, मेरे दिल का साज़ उदास है
कभी इसको ऐसी खनक तो दे, तेरे घुँघरुओं पे मचल सके

जो खिले थे प्यार के रंग सौ, कभी पँखुरियों में गुलाब की
उन्हें यों हवा ने उड़ा दिया, कि पता भी आज न चल सके

-गुलाब खंडेलवाल

[ हर सुबह एक ताज़ा गुलाब, लोकभारती प्रकाशन ]

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