यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
 

कौमी गीत  (काव्य)

Author: अजीमुल्ला

हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा
ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा
इसकी रूहानियत से, रोशन है जग सारा
कितनी कदीम, कितनी नईम, सब दुनिया से न्यारा
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमुन की धारा
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा
इसकी खाने उगल रहीं, सोना, हीरा, पारा
इसकी शान शौकत का दुनिया में जयकारा
आया फिरंगी दूर से, एेसा मंतर मारा
लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा
आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा
तोड़ो, गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा
हिन्दू मुसलमाँ सिख हमारा, भाई भाई प्यारा
यह है आज़ादी का झंडा, इसे सलाम हमारा ॥

-- अजीमुल्ला

[1857 के बागी सैनिकों का कौमी गीत]

आज़ादी की अग्निशिखाएँ -
चयन एवं संयोजन - डॉ शिव कुमार मिश्र

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