यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
 

मंजुल भटनागर की बाल-कविताएं | बाल कविता (बाल-साहित्य )

Author: मंजुल भटनागर

दादी

चाँद की दादी
आ जा ना
ढेर खिलोने दे जा ना
दूध जलेबी ले जा ना
चाँद का कुर्ता क्यों सिलती है ?
मुझको भी बतला जा ना
कोई कहानी कह जा ना


- मंजुल भटनागर

ई-मेल: manjuldbh@gmail.com

 

2)

शाम

शाम को खेलू ऐसे खेल
दोस्त बने हैं रेलम पेल
मम्मी झिडके बाज ना आऊ
घर की छत पर में चढ़ जाऊ
दीदी को में रोज चिढाऊ
शाम हुयी तो सैऱ सपाटा
आ जाओ दोस्तों, वाह भई वाह !!

- मंजुल भटनागर

 

 

3)

सूरज

सूरज तू क्यों आता हे
सोते मुझे उठाता है
रोज स्कूल भगाता है
खेलू तो छिप जाता है
कल तुम आना देरी से
सोते रहना शहरी से

- मंजुल भटनागर

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