अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

हाथ में हाथ मेरे | ग़ज़ल (काव्य)

Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

हाथ में हाथ मेरे थमा तो जरा
हम कदम हमको अपना बना तो जरा

रँग दुनिया का तुझको समझ आएगा
आँख से अपने पर्दा हटा तो जरा

कद छोटा सभी का क्यूं दिखता तुम्हें
है खड़ा तू कहाँ, ये बता तो जरा

लोग हो जाएंगे तेरे अपने सभी
तू अपना किसी को बना तो जरा

सुनते रहते हैं जिनको सुनाता है तू
खुद को खुद की कभी तू सुना तो जरा

पास आ जाएगी मंजिलें भी सभी
तेज अपने कदम तू चला तो जरा

तुम करोगे ना शिकवा गिला कोई भी
दर्द में खुद को जीना सिखा तो जरा

तुमको दिखती है सारे जहां में कमी
खुद में हैं कितनी कमियाँ गिना तो जरा

- रोहित कुमार ‘हैप्पी'

 

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