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चाँद की सैर (बाल-साहित्य ) |
Author: डॉ सुशील शर्मा
डब्बू ने इक सपना देखा
चाँद सैर पर जाने का।
उड़ता हुआ चाँद पर पहुँचा
बड़ा मज़ा उड़ जाने का।
लेकिन जब वो चाँद पे पहुँचा
वहाँ पड़ा पूरा सुनसान।
न घर थे न बाग़ बगीचे
मौसम भी खुद से अनजान
बड़े बड़े मिट्टी के टीले
उबड़ खाबड़ रस्ते थे
न पंछी न कोई जानवर
न पढ़ाई के बस्ते थे।
हवा वहाँ नहीं चलती थी
न बादल न रँग थे।
न नदियाँ न झरने सुंदर
न ही मित्र कोई सँग थे।
न मम्मी न पापा दिखते
न भोजन न पानी
डब्बू बाबा लगे सिसकने
याद आ गई नानी।
फिर धीरे से मम्मी ने
डब्बू को पुचकारा।
सपना टूटा आँख खुली
मम्मी से लिपटा बेचारा।
एक ह्रदय का टुकड़ा होता
दूजा जीवन की पहचान।
-डॉ सुशील शर्मा, भारत
ईमेल-archanasharma891@gmail.com