अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

नया वर्ष हो मंगलकारी (काव्य)

Author: डॉ. राजीव कुमार सिंह

नया वर्ष हो सबकी खातिर मंगलकारी,
इसका प्रतिक्षण साबित हो संकट संहारी,
करे दूर यह वर्ष धरा से हर बीमारी,
मिट जाए दुनिया की हर बाधा-लाचारी।

हो जाए इस वर्ष धरा पर कुछ ऐसा भी,
मिले सभी को स्वास्थ्य और रुपया-पैसा भी,
मिट जाए हर कष्ट भले वह हो कैसा भी,
मानव का व्यवहार बने मानव जैसा भी।

अब समाज को ना छल पाए मजहब का मद,
हों स्वतंत्र पर पहचानें हम सब अपनी हद,
मिले सभी को रोजगार के साथ योग्य पद,
बढ़े निरंतर अच्छाई से मानव का कद।

सरहद पर हो शांति और संबंध सुखद हों,
रहे शिष्ट व्यवहार और संवाद शहद हों,
मिलें सभी के समाचार पर नहीं दुखद हों,
त्यागें सब दुर्भाव और सद्भाव बृहद हों।

राजनीति ना भारी हो पाए जनहित पर,
पहचाने जनता अपना हितकर-अनहितकर,
सुख पाएँ सब औरों के मन को हर्षित कर,
सबमें मिट जाने का साहस हो परहित पर।

नए साल के पहले दिन प्रभु इतना कर दो,
जो कुछ माँगा है हमने देने का वर दो,
प्रभुवर! यह आशीष हमारे माथे धर दो,
जीवन मंद पड़ा है इसमें फिर गति भर दो।

-डॉ. राजीव कुमार सिंह

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