जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 

नव-वर्ष! स्वागत है तुम्हारा (विविध)

Author: डॉ० शिबन कृष्ण रैणा

नव-वर्ष यानी नया साल! जो था सो बीत गया और जो काल के गर्भ में है,वह हर पल,हर क्षण प्रस्फुटित होने वाला है। यों देखा जाए तो परिवर्तन प्रकृति का आधारभूत नियम है। तभी तो दार्शनिकों ने इसे एक चिरंतन सत्य की संज्ञा दी है। इसी नियम के अधीन काल-रूपी पाखी के पंख लग जाते हैं और वह स्वयं तो विलीन हो जाता है किन्तु अपने पीछे छोड जाता है काल के सांचे में ढली विविधायामी आकृतियां। कुछ अच्छी तो कुछ बुरी। कुछ रुपहली तो कुछ कुरूप। काल का यह खेल या अनुशासन अनन्त समय से चला आ रहा है। तभी तो काल को महाकाल या महाबली भी कहा गया है। उसकी थाह पाना कठिन है। उस अनादि-अनन्त महाकाल को दिन,मास और वर्ष की गणनाओं में विभाजित करने का प्रयास हमारे गणितज्ञ एवं ज्योतिषी लाखों वर्षों से करते आ रहे हैं। उसी काल गणना का एक वर्ष देखते-ही-देखते हमारे हाथों से फिसल कर इतिहास का पृष्ठ बन गया और हम बाहें पसारे पूरे उत्साह के साथ अब नए वर्ष का स्वागत करने को तैयार हैं।

तो साहब,वर्ष २०२० चुपचाप सरक गया और हमें भनक तक नहीं पडी। नव-वर्ष की पूर्व रात्रि को अच्छे-भले सोए थे आप-हम और अगली सुबह मालूम पड़ा कि नए वर्ष का अवतरण हो गया है। हर प्राणी- चाहे वह जड था या चेतन- की आयु एक वर्ष बढ़ गई। दार्शनिकों के अन्दाज़ में बात की जाए तो आयु बढी नहीं,आयु घट गई। यों यह बात अल्पायु वालों पर लागू नहीं होती। लागू होती है गृहस्थाश्रम की सीढ़ी को पार करने वाले उन बुजुर्गों पर जिन्होंने जीवन के ढेर सारे वसंत देखें हैं। अल्पायु वालों के लिए तो नया वर्ष नई खुशियों,आशाओं,चाहतों, एवं उमंगों का सन्देश लेकर आता है।

नया वर्ष जन्म कहां से लेता है,कभी आपने इस बात पर विचार किया है? लीजिए हम बताते हैं आपको। नया वर्ष जन्म लेता है बीते वर्ष की कोख में से। नए वर्ष का सूर्य अपनी नई ऊषमा के साथ जब गगनांचल में हंसता-खेलता उदित होता है, तो एक कवि की ये पंक्तियां बरबस याद आती हैं-

वह देखो मुंदी पलकों को खोलने
उगा है नए वर्ष का सूरज।
तम को हरने,खुशियां बांटने
वह देखो उगा है नए वर्ष का सूरज।
कर्त्तव्य के रथ पर
मानव का पथ आलोकित करने-
वह देखो उगा है नए वर्ष का सूरज।
बीते पल की प्रसव-पीड़ा से
बीते वर्ष की जकड़न से
वह देखो उगा है नए वर्ष का सूरज।

कुछेक वर्षों से नव-वर्ष का स्वागत करने के लिए स्वदेशी और विदेशी मीडिया चैनलों पर मनोरंजन के नाम पर अनेक रंगारंग कार्यक्रम प्रसारित करने की होड़-सी मची हुई है। दर्शक अपने दु:खों को कुछ घंटों के लिए भूलकर रज़ाई या कम्बल की गर्मी में मूंगफली टूंगते हुए नव-वर्ष के सपनों को इन ग्लैमर-भरे कार्यक्रमों में साकार करने का प्रयास करते हैं।यह बात सामान्य दर्शकों की है।नव-वर्ष का स्वागत करने का महान व्यक्तियों का तरीका कुछ और ही रहा है। तमिल साहित्य के यशस्वी कवि सुब्रह्मण्यम् भारती जितना अपने काव्य के लिए विख्यात हैं,उतना ही अपने दीनबन्धुत्व के लिए भी। जीवन में उन्हें जो भी मिला ,वह उन्होंने दीनहीन बन्धुओं को अर्पित कर दिया। कहते हैं कि वे वर्ष के प्रथम दिन नियमपूर्वक अपना सारा समय सर्वहारा वर्ग के दु:खों को दूर करने में बिताते थे। अपने नए वस्त्र उतार कर भिखारियों को पहनाते और इस तरह से नए साल की शुरुआत करते।

विश्वविख्यात भारतीय इंजीनियर सर एम0 विश्वेशरैया को कौन नहीं जानता! नई खोजें करने और नई चीज़ें सीखने की जिज्ञासा उन में हमेशा बनी रही। वे जीवन भर अपने को एक जिज्ञासु विद्यार्थी ही मानते रहे। अपने कर्त्तव्य पालन की भावना के प्रति जागरूक होकर वे वर्ष का प्रथम दिन नियमपूर्वक किसी न किसी नई चीज़ की जानकारी प्राप्त करने में बिताते थे। यह उनका स्वभाव था और नए वर्ष का स्वागत करने का अपना तरीका।

नव-वर्ष का स्वागत करने के ये तरीके कितने विरल,कितने आनन्ददायक तथा कितने प्रेरणास्पद हैं! यदि हम भी नए वर्ष का स्वागत ऐसे ही किसी नवीन संकल्प से करें तो कितना अच्छा हो। मन-ही-मन परम पिता परमेश्वर को याद करते हुए हमारा संकल्प होना चाहिए- " नया वर्ष प्रारम्भ हो चुका है। नए उत्साह और नई स्फूर्ति के साथ मुझे अपने उद्देश्य को मूर्त्त रूप प्रदान करना है, सफलता अवश्य मेरा वरण करेगी। लाख विघ्र-बाधाएं आएं पर मैं अपने कर्त्तव्य-पथ से पीछे हटूंगा नहीं---मेरे प्रभु मेरे साथ हैं। नए वर्ष में मैं कुछ कर के दिखऊंगा-"। यदि हम ऐसा करते हैं तो अनायास ही महाकवि निराला की ये पंक्तियां सार्थक हो उठेंगी, जिन में सकल जगत के लिए नव्यता की कामना की गई है-

नव गति नव लय ताल छंद नव,
नवल कंठ नव जलद मन्द्र रव
नव नभ के नव विहग वृंद को
नव पर नव स्वर दे।

दरअसल,नव्यता जड़ता को दूर करती है और जब जडता दूर हो जाती है तो मन-प्राण पुलकित एवं निर्मल हो उठते हैं और नई कर्म-भूमि की सृष्टि होती है। आइए, हम सब नए उत्साह,नए मनोबल और नई स्फूर्ति के साथ नव-वर्ष का बाहें पसार कर स्वागत करें और कामना करें कि नया वर्ष समाज के हर व्यक्ति के लिए सुख-शान्ति का संदेश लेकर आए---खेतों में किया गया श्रम सार्थक हो, बालकों की मासूम हंसी अबाधित रहे,ललनाओं का श्रृंगार और मान सुरक्षित रहे और हम सभी पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष की भावनाओं तथा अन्य संकीर्णताओं को भूलकर नई उमंग के साथ नव-वर्ष का अभिनन्दन करें।

अंत में,इस बात का उल्लेख करना अनुचित न होगा कि बीते वर्ष की खट्टी-मीठी स्मृतियों में हम कॅरोना के संकट को भूल नहीं सकते।हालांकि इस महामारी ने हम सब को खूब झकझोरा,आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से हमारी खूब परीक्षा ली, फिर भी देशवासियों के आत्मविश्वास और मनोबल की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने इस प्राकृतिक आपदा का डट कर मुकाबला किया।जनसंख्या के लिहाज से विश्व के दूसरे बड़े हमारे देश ने पूर्ण आत्मविश्वास और धैर्य के साथ इस विपदा का प्रतिकार किया। इतिहास गवाह है कि संकट के समय देश की एकजुटता की खातिर आपदाओं से संघर्ष करने की अदम्य क्षमता हमारे देश की विशिष्टता रही है।

आशा की जानी चाहिए कि आने वाले वर्ष में हम स्वविवेक, कर्त्तव्य-बोध, दानशीलता, अनुशासन-प्रियता, मितव्ययता, पारस्परिक सहयोग, भाईचारा, सहिष्णुता आदि के अनुपालन से करोना को परास्त कर चुके होंगे और नया वर्ष हम सब के लिए खुशियों और प्रसन्नता का संदेश लेकर आएगा।

डॉ० शिबन कृष्ण रैणा
2/५३७ अरावली विहार
अलवर, राजस्थान)
skraina123@gmail.com

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश