यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
 

है मुश्किलों का दौर (काव्य)

Author: शांती स्वरुप मिश्र

ज़रा उदासियों का मौसम, बदल के तो देखो
कुछ कदम तो मेरे साथ, तुम चल के तो देखो

उतर जायेगा बोझ सारा, तेरे दिल का अय यारा,
अपनी हसरतों को थोड़ा सा, बदल के तो देखो

यूं ही अंधेरों के दरमियां, बनाते क्यों हो तस्वीरें,
ज़रा दुनिया के उजालों में, निकल के तो देखो

ये पत्थर भी टूट जाते हैं, मोहब्बत की तपिश से,
ज़रा सा मोहब्बत के नाम से, पिघल के तो देखो

हमको तो है यक़ीन, तुम्हारी लियाक़तों पर दोस्त,
ज़रा ख्वाबों से थकी आँखों को, मसल के तो देखो

बहुत चल लिए तुम, ख़ारों से भरी राहों पे "मिश्र",
गर पानी हैं खुशियों, तो रस्ता बदल के तो देखो

- शांती स्वरुप मिश्र
  ई-मेल: mishrass1952@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश