पुष्पा भारद्वाज-वुड की दो कविताएँ (काव्य)

Author: डा॰ पुष्पा भारद्वाज-वुड

ज़िम्मेदारी

सामाजिक असंगति
और
सामाजिक परम्परा
क्या इनमें कोई सम्बन्ध है?

सामाजिक परम्परा
जिसे हम जीवित रखने का भरसक प्रयास कर रहे हैं
पाश्चात्य परम्पराओं के लालच से बचते हुए
और
भावी पीढ़ियों को बचाते हुए।

सामाजिक असंगति का प्रमुख कारण है
सामाजिक परम्पराओं के बारे में जानकारी का अभाव
और
एक-दूसरे के प्रति अविश्वास।

परिणाम?
व्यक्तिगत रूप से स्वयं को अवांछित सोशल मिसफ़िट
और योगदान देने में असमर्थ महसूस करना।

यदि हमें इस ‘असंगति' के कारणों का बोध हो गया है
या
बोध हो रहा है तो उन कारणों को कैसे दूर किया जाए
और
उन्हें दूर करने की ज़िम्मेदारी किस की है?

--डा॰ पुष्पा भारद्वाज-वुड

 

(2)


'नारी तुम केवल श्रद्धा हो' 
(व्यंग्य नारी के बारे में कुछ लोगों की सोच पर)

'नारी तुम केवल श्रद्धा हो'
श्रद्धा ही बन कर रहा करो।

तुम्हारा यह नया रूप तुम्हें रास नहीं आता।
समाज ने तुम्हें जो पद दिया है
उसे ही भले से निभाती रहा करो।

क्या बहन, पुत्री, पत्नी और माँ का पद
तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है?
इन्हें ही पूरे विश्वास से निभाती रहा करो।

दूसरों से अपेक्षा करना
तुम्हारी मूर्खता ही नहीं कमजोरी भी है।
परिवार और समाज की आशाओं को
पूरा करने की अपनी नियति को निभाती रहा करो।

तुमने जो समाज को बदलने का बीड़ा उठाया है
उसे त्याग नियति के लिखे को बुझे मन से ही सही पर निभाती रहा करो।

--डा॰ पुष्पा भारद्वाज-वुड

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