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प्रवासी (कथा-कहानी) |
Author: रोहित कुमार ‘हैप्पी'
विदेश से भारत लौटने पर--
--तू विदेश छोड़कर भारत क्यों लौट आया? रवि के दोस्त ने सवाल किया।
--वहाँ अपनापन नहीं लगता था। अपना देश अपना होता है, यार।
--तू पागल है! ...पर चल तेरी मरज़ी।
फिर पता नहीं क्या हुआ कि तीन साल तक भारत में रहने के बाद अचानक रवि सपरिवार दुबारा विदेश को रवाना हो गया।
विदेश लौटने पर--
"रवि, तुम यहाँ?" ऑकलैंड के एक मॉल में अचानक रवि को अपने सामने देखकर उसका एक परिचित चकित रह गया।
"हाँ, भइया। मैं लौट आया।" फिर बोला, "अब वहाँ कोई अपना नहीं लगता। सब ‘मटेरियलिस्टिक' हो गए हैं। सगे बहन-भाई भी! माँ तो अब रही नहीं, तो....!" इससे आगे न वह कुछ बोल पाया और न दूसरे को कुछ पूछने का साहस हुआ।
--रोहित कुमार ‘हैप्पी'
न्यूज़ीलैंड