देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

ग़ज़ल  (काव्य)

Author: ए. डी राही

अपने अरमानों की महफ़िल में सजाले मुझको
बेज़ुबाँ  दीप  हूँ  कोई भी जला ले मुझको

नींद जलती हुई आँखों  से चुराने वाले!
तू गुनाहों की तरह दिल में छुपा ले मुझको

उम्र भर होश में आ जाए तो मेरा जिम्मा
वो नशा हूँ  कोई होठों से लगा ले मुझको

बेवफ़ा वक़्त की बेरहम  हवाओं ठहरो
हो गया गुल तो पुकारेंगे उजाले मुझको 

कोई रूठी हुई तक़दीर समझकर 'राही'
अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझको

--ए. डी राही
  [नई ग़ज़ल ]

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश